देश की आजादी में जनपद रायबरेली का विशेष योगदान रहा है यहाँ के आम जनमानस ने आजादी दिलाने में अहम् भूमिका निभाई है रायबरेली जिले में आजादी के लिए योगदान और आजादी की लड़ाई में शामिल शूरबीरो के अदम्य साहस की कथाओ को आप तक पहुचाने का ये एक छोटा सा प्रयास है
जनवरी 1921 मुंशीगंज गोलीकांड से ना केवल रायबरेली बल्कि पूरा देश राजनीतिक चेतना से ओत प्रोत हो गया आजादी की लड़ाई में प्राणोत्सर्ग की भावना आम हो गई समाचार पत्रों ने प्रायः एक ही स्वर से सरदार बीर पाल सिंह को गोली कांड का दोषी ठहराया सप्ताहिक प्रताप के यशस्वी संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ने उक्त कांड की जांच के लिए अपनी ओर से सर्वश्री उमाशंकर दीक्षित पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन तथा पंडित जगन्नाथ प्रसाद को रायबरेली भेजा इस जांच की रपट विद्यार्थी जी ने प्रताप के 19 जनवरी 1921 के अंक में पुनः प्रकाशित की इलाहाबाद का दैनिक इंडिपेंडेंट भी पीछे नहीं रहा
धन और पशुबल के मद में चूर सरदार वीरपाल सिंह एमएलसी आत्मज सरदार प्रेम सिंह तालुकेदार खुरहटी ने प्रताप और इंडिपेंडेंट को नोटिस दी कि यदि दोनों समाचार पत्र मुंशीगंज हत्याकांड का उन पर किया गया दोषारोपण वापस नहीं लेंगे तो उन पर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी
जनवरी 1921 मुंशीगंज गोलीकांड से ना केवल रायबरेली बल्कि पूरा देश राजनीतिक चेतना से ओत प्रोत हो गया आजादी की लड़ाई में प्राणोत्सर्ग की भावना आम हो गई समाचार पत्रों ने प्रायः एक ही स्वर से सरदार बीर पाल सिंह को गोली कांड का दोषी ठहराया सप्ताहिक प्रताप के यशस्वी संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी ने उक्त कांड की जांच के लिए अपनी ओर से सर्वश्री उमाशंकर दीक्षित पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन तथा पंडित जगन्नाथ प्रसाद को रायबरेली भेजा इस जांच की रपट विद्यार्थी जी ने प्रताप के 19 जनवरी 1921 के अंक में पुनः प्रकाशित की इलाहाबाद का दैनिक इंडिपेंडेंट भी पीछे नहीं रहा
धन और पशुबल के मद में चूर सरदार वीरपाल सिंह एमएलसी आत्मज सरदार प्रेम सिंह तालुकेदार खुरहटी ने प्रताप और इंडिपेंडेंट को नोटिस दी कि यदि दोनों समाचार पत्र मुंशीगंज हत्याकांड का उन पर किया गया दोषारोपण वापस नहीं लेंगे तो उन पर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी
इंडिपेंडेंट पत्र ने तो विवरण प्रकाशित किया था वह सप्ताहिक प्रताप की सूचनाओं के आधार पर ही था उसके पास स्वयं के एकत्रित सबूत साक्ष्य न थे अतः नोटिस मिलने के बाद इंडिपेंडेंस क्षमा याचना कर ली किंतु प्रताप के निर्भीक संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जी तथा उनके प्रकाशक पंडित शिव नारायण मिश्र ने सरदार वीरपाल की नोटिस का मुंहतोड़ उत्तर दिया
उत्तर में उन्होंने लिखा आपकी नोटिस के उत्तर में हम आपको सूचित कर रहे हैं कि हमने जो कुछ भी लिखा है उस संबंध में हम पूरी तरह न्याय के पथ पर हैं हमारे पास अपने विचारों की पुष्टि के लिए पर्याप्त साक्ष्य है अभियोजन के संबंध में सच्चाई यह है कि जनता हमारा अखबार लेकर आपके दरवाजे पर चिल्लाएगी मैं समझता हूं कि इंडिपेंडेंट के पास समय रहते पर्याप्त तथ्य नहीं पहुंच पाए जिसे उन्होंने क्षमा याचना कर ली .
प्रताप के संपादक और प्रकाशक का उक्त उत्तर पा कर बीरपाल सिंह बौखला गया अंग्रेजी अधिकारियों की शह पाकर उसने जिला रायबरेली के सर्किट मजिस्ट्रेट की अदालत में सरदार वीरपाल सिंह बनाम गणेश शंकर विद्यार्थी एडिटर प्रताप कानपुर व् शिव नरायण मिश्र पब्लिशरफीलखाना बाजार कानपुर पर जुर्म धारा 499/500 ताजीरातहिन्द नामक ऐतिहासिक मुकदमा कायम कराया.
सरदार बीरपाल सिंह की ओर से मुकदमे की पैरवी मुं अफजल खां बार- एट- ला ने की उक्त सनसनीखेज मुकदमे में प्रताप की पैरवी करने के लिए चोटी के वकीलों ने अपनी सेवाये समर्पित की थी जिनमें प्रमुख थे श्री बाबू किसमतराय जगधारी.( रायबरेली ) हरिमोहन बार-एट- ला ( इलाहाबाद ) विशंभर नाथ बाजपेई (उन्नाव) पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र (भूतपूर्व चीफ जस्टिस हैदराबाद ) प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा (झांसी) पंडित प्रकाश मिश्रा (लखनऊ ) जगन्नाथ चौधरी (उन्नाव )
प्रताप के संपादक और प्रकाशक का उक्त उत्तर पा कर बीरपाल सिंह बौखला गया अंग्रेजी अधिकारियों की शह पाकर उसने जिला रायबरेली के सर्किट मजिस्ट्रेट की अदालत में सरदार वीरपाल सिंह बनाम गणेश शंकर विद्यार्थी एडिटर प्रताप कानपुर व् शिव नरायण मिश्र पब्लिशरफीलखाना बाजार कानपुर पर जुर्म धारा 499/500 ताजीरातहिन्द नामक ऐतिहासिक मुकदमा कायम कराया.
सरदार बीरपाल सिंह की ओर से मुकदमे की पैरवी मुं अफजल खां बार- एट- ला ने की उक्त सनसनीखेज मुकदमे में प्रताप की पैरवी करने के लिए चोटी के वकीलों ने अपनी सेवाये समर्पित की थी जिनमें प्रमुख थे श्री बाबू किसमतराय जगधारी.( रायबरेली ) हरिमोहन बार-एट- ला ( इलाहाबाद ) विशंभर नाथ बाजपेई (उन्नाव) पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र (भूतपूर्व चीफ जस्टिस हैदराबाद ) प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा (झांसी) पंडित प्रकाश मिश्रा (लखनऊ ) जगन्नाथ चौधरी (उन्नाव )
आधुनिक हिंदी के जन्मदाता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी रायबरेली ने प्रख्यात साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा को मुकदमे की पैरवी के लिए विशेष रूप से बुलाया था यह शहीदों की खून की प्रतिष्ठा का प्रश्न था प्रताप मानहानि केस में प्रताप की ओर से जनपद के विभिन्न ग्रामों के 65 गवाहों ने गवाही दी इन गवाहों में अधिकांश प्रत्यक्षदर्शी किसान थे दो महिलाएं श्रीमती जनकिया विधवा बुधई तथा श्रीमती बसंता दोनों गवाह थी
जिन राष्ट्रीय नेताओं ने इस मुकदमे में साक्ष्य देकर गणेश जी के अग्रलेख का समर्थन किया उसमें पंडित मदन मोहन मालवीय पंडित मोतीलाल नेहरु पंडित जवाहरलाल नेहरु पंडित विशंभर दयाल त्रिपाठी( नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी ) सी एस रंगाअय्यर दैनिक वर्तमान के संपादक रमाशंकर अवस्थी आदि प्रमुख थे रायबरेली नगर के डाक्टर वकील किसान नेता व्यापारी म्युनिसिपल कमिश्नरने विद्यार्थी जी के पक्ष का प्रबल समर्थन किया था इसमें बाबू देवी प्रसाद वकील बाबू चित्रगुप्त प्रसाद वकील मीर वाजिद अली म्युनिसिपल कमिश्नर गिरधारी लाल अग्रवाल बाबू किसमत राय पण्डित मार्तण्ड दत्त वैध पंडित अवन्तिका प्रसाद पण्डित माता प्रसाद मिश्र सेठ कंधई लाल अग्रवाल प्रमुख थे
5 माह की लंबी बहस के बाद 30 जुलाई 1921 को प्रताप मानहानि केस का निर्णय मजिस्ट्रेट मकसूद अली खान ने 71 पन्नो में दिया जैसा कि आशंका थी की न्यायप्रियता का ढोंग रचने वाले अंग्रेजो ने एक हत्यारे का साथ दिया और गणेश जी तथा पंडित शिव नारायण मिश्र को दोनों को धाराओं के तहत छह- छह माह की जेल और एक -एक हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई गई
विद्यार्थी जी का जुर्माना सेठ कन्हई लाल अग्रवाल ने भर दिया किंतु शिव नारायण मिश्र ने सेशन जज एफ जी शेरिंग की अदालत में फैसले के विरुद्ध अपील कर दी लेकिन यह अपील 30 जुलाई 1921 को खारिज कर दी गई अपील खारिज किए जाने का समाचार जैसे ही अदालत से बाहर खड़ी भीड़ को मिला वह उत्तेजित हो गई रास्ट्रीय नारों के साथ गणेश शंकर विद्यार्थी तथा शिव नारायण मिश्र की जय जयकार करने लगी ने भीड़ इतने आक्रोश में थी कि गणेश जी को 1 घंटे तक अदालत से बाहर नहीं लाया जा सका उत्तेजित भीड़ से आशंकित होकर जिला जज नानावती ने फ़ौरन अपने बंगले से ही जमानत स्वीकार कर ली उत्साह और साहस से जनता ने राष्ट्रीय नेताओं की जय के नारों गणेश जी की जयऔर शिव नरायण मिश्र के जय का नारा लगाया जो अभूतपूर्व दृश्य था
विद्यार्थी जी का जुर्माना सेठ कन्हई लाल अग्रवाल ने भर दिया किंतु शिव नारायण मिश्र ने सेशन जज एफ जी शेरिंग की अदालत में फैसले के विरुद्ध अपील कर दी लेकिन यह अपील 30 जुलाई 1921 को खारिज कर दी गई अपील खारिज किए जाने का समाचार जैसे ही अदालत से बाहर खड़ी भीड़ को मिला वह उत्तेजित हो गई रास्ट्रीय नारों के साथ गणेश शंकर विद्यार्थी तथा शिव नारायण मिश्र की जय जयकार करने लगी ने भीड़ इतने आक्रोश में थी कि गणेश जी को 1 घंटे तक अदालत से बाहर नहीं लाया जा सका उत्तेजित भीड़ से आशंकित होकर जिला जज नानावती ने फ़ौरन अपने बंगले से ही जमानत स्वीकार कर ली उत्साह और साहस से जनता ने राष्ट्रीय नेताओं की जय के नारों गणेश जी की जयऔर शिव नरायण मिश्र के जय का नारा लगाया जो अभूतपूर्व दृश्य था
कानपुर में विद्यार्थी जी ने १९१३ से साप्ताहिक ‘प्रताप’ के माध्यम से न केवल क्रान्ति का नया प्राण फूँका बल्कि इसे एक ऐसा समाचार पत्र बना दिया जो सारी हिन्दी पत्रकारिता की आस्था और शक्ति का प्रतीक बन गया। प्रताप प्रेस में कम्पोजिंग के अक्षरों के खाने में नीचे बारूद रखा जाता था एवं उसके ऊपर टाइप के अक्षर। ब्लाक बनाने के स्थान पर नाना प्रकार के बम बनाने का सामान भी रहता था। पर तलाशी में कभी भी पुलिस को ये चीजें हाथ नहीं लगीं। विद्यार्थी जी को १९२१ से १९३१ तक पाँच बार जेल जाना पड़ा और यह प्राय: ‘प्रताप‘ में प्रकाशित किसी समाचार के कारण ही होता था। विद्यार्थी जी ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की। उनके पास पैसा और समुचित संसाधन नहीं थे, पर एक ऐसी असीम ऊर्जा थी, जिसका संचरण स्वतंत्रता प्राप्ति के निमित्त होता था। ‘प्रताप‘ प्रेस के निकट तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया, जिसमें सभी जब्तशुदा क्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थी। यह ‘प्रताप’ ही था जिसने दक्षिण अफ्रीका से विजयी होकर लौटे तथा भारत के लिये उस समय तक अनजान महात्मा गाँधीकी महत्ता को समझा और चम्पारण सत्यग्रह की नियमित रिपोर्टिंग कर राष्ट्र को गाँधी जी जैसे व्यक्तित्व से परिचित कराया। चौरी-चौरा तथा काकोरी काण्ड के दौरान भी विद्यार्थी जी ‘प्रताप’ के माध्यम से प्रतिनिधियों के बारे में नियमित लिखते रहे। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित सुप्रसिद्ध देशभक्ति कविता पुष्प की अभिलाषा प्रताप अखबार में ही मई १९२२ में प्रकाशित हुई। बालकृष्ण शर्मा नवीन, सोहन लाल द्विवेदी, सनेहीजी, प्रताप नारायण मिश्र इत्यादि ने प्रताप के माध्यम से अपनी देशभक्ति को मुखर आवाज दी।
वस्तुत: प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ ऐसी थी कि जिसमें छिपकर रहा जा सकता था तथा फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। बनारस षडयंत्र से भागे सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य प्रताप अखबार में उपसम्पादक थे। बाद में भट्टाचार्य और प्रताप अखबार से ही जुड़े पं0 राम दुलारे त्रिपाठी को काकोरी काण्ड में सजा मिली। भगत सिंह ने तो ‘प्रताप‘ अखबार में बलवन्त सिंह के छद्म नाम से लगभग ढाई वर्ष तक कार्य किया। सर्वप्रथम दरियागंज, दिल्ली में हुये दंगे का समाचार एकत्र करने के लिए भगत सिंह ने दिल्ली की यात्रा की और लौटकर ‘प्रताप’ के लिए सचिन दा के सहयोग से दो कालम का समाचार तैयार किया। चन्द्रशेखर आजाद से भगत सिंह की मुलाकात विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में करायी थी, फिर तो शिव वर्मा सहित तमाम क्रान्तिकारी जुड़ते गये। यह विद्यार्थी जी ही थे कि जेल में भेंट करके क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा छिपाकर लाये तथा उसे ‘प्रताप‘ प्रेस के माध्यम से प्रकाशित करवाया। जरूरत पड़ने पर विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की माँ की मदद की और रोशन सिंह की कन्या का कन्यादान भी किया। यही नहीं अशफाकउल्ला खान की कब्र भी विद्यार्थी जी ने ही बनवाई।
विद्यार्थी जी का ‘प्रताप‘ तमाम महापुरूषों को भी आकृष्ट करता था। १९१६ में लखनऊ कांग्रेस के बाद महात्मा गाँधी और लोकमान्य तिलक इक्के पर बैठकर प्रताप प्रेस आये एवं वहाँ दो दिन रहे।
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दैनिक प्रताप समाचार पत्र |