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गुरुवार, 16 अगस्त 2018

तिरगें को नमन

झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत
 भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त
करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम 
ऐ शहीदों आप को शत-शत प्रणाम देश का रोशन किया दुनिया में नाम 
मुल्क का हर नागरिक ए मोहतरम आप की अजमत को करता है सलाम 
आप में कितना था साहस  आपने कितना था दम 
जब गुलामी से हुई नफरत तो देखो रख दिया तथा पलटकर आपने 
 खून की खेली है  होली सुबहो शाम टिक नहीं पाएं थे  दुश्मन सामने 
फांसी के तख्ते पर झूले कहके वंदे मातरम 
देश की आजादी का सपना संजोए सिर्फ मंजिल की रहे डग नापते 
 देशभक्ति का लिए जज्बा चले फर्क ना समझे हैं वो दिन रात में 
टूटने पाया नहीं हरगिज कभी मां का भरम
 हम को देखकर आप आजादी चले पर नहीं निकले हैं कुछ इंसान भले 
भूल बैठे आप की कुर्बानी को क्या  कहें   हम  लोगों   की  नादानी को
 भूल बैठे फर्ज को और अपना वह धरम
 क्या बताएं क्या है हालत देश की नफरतों कि बिछ रही है गोटियाँ
 इस कदर कानून की  उडी धज्जियां ना सलामत अब रही घर बेटियां 
 हर तरफ भ्रष्टाचार का धंधा गरम 
गर बचाना है हमें अपना वतन टूटने पाए ना हो इसका पतन ये दोस्तों
 करना होगा मिलकर सबको  जतन महके  फिर से यह प्यारा   चमन 
भेदभाव छोड़ कर सफ़ीर रक्खो  आगे कदम

                                                                                 रमजान अली सफ़ीर

सोमवार, 6 अगस्त 2018

जब तिलोई के काँग्रेस कार्यालय पर अंगरेजी हुकूमत ने ताला लगा कर गाँधी टोपी और तिरंगे पर लगाया प्रतिबंध तब आज़ादी के मतवाले देशभक्तों ने ताला तोड़ कर जलाई आज़ादी की मशाल

बुधवार, 15 अगस्त 2018 को पूरे भारत के लोगों द्वारा भारत के स्वतंत्रता दिवस को मनाया जायेगा। इस साल 2018 में भारत अपना 72वाँ स्वतंत्रता दिवस मनायेगा। 15 अगस्त 1947 को भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। पर इस आजादी को पाने के लिए देश के अनेक वीरों ने अपनी जान गवाई है तहसील तिलोई भी आजादी के इस आन्दोलन का गवाह बना यहाँ के अनेक आजादी के मतवालों ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ़ बगावत का बिगुल फूंका अग्रेज़ी सरकार की अनेक यातनाओं को सहा और भारत माँ को आजादी दिलाई तहसील तिलोई के इन सभी आजादी के मतवालों को सादर नमन हमें आप पर गर्व है                      

                                    रामस्वरूप मिश्रा विशारद आत्मज  काशीदीन 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूज्य श्री विशारद जी का जन्म अप्रैल 1902 में सेमरौता में हुआ था। जिला परिषद में अध्यापक की नौकरी त्यागकर लगान बंदी आंदोलन में आए सन 1932- 33 में दो  बार 6 महीने की सख्त सजा पाई व्यक्तिगत सत्याग्रह में  सन 1940- 41 में 1 वर्ष की सजा 50 रुपए का जुर्माना लगाया गया। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में 14 माह तक नजर बंद रहे कई साल तक  जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष तथा प्रांतीय व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी व जिला बोर्ड के सदस्य रहे तिलोई और बछरावां सयुक्त विधानसभा से आप 1952 से 1957 तक  विधायक भी रहे  पंडित रामस्वरूप मिश्र विशारद जी की   राजनीतिक तथा साहित्य दोनों में पैठ रही कृष्णायन महाकाव्य की रचना आपने की थी 13मई  सन 1980 में स्वर्गवासी हुये।

                                 अहोरवा दीन यादव आत्मज अधीन यादव 

अहोरवा दीन निवासी पहाड़पुर थाना  मोहनगंज जिनका जन्म 1910 में तहसील तिलोई के पहाडपुर में हुआ था।
 15 वर्ष की अवस्था में कानपुर नौकरी हेतु गए वहां गणेश शंकर विद्यार्थी के माध्यम से डाक वितरण  में नियुक्त हो गए। 1 दिन डाक  लेकर जाते हुए एक कांग्रेस जुलूस में शामिल हो गये। पकड़े जाने और पिटाई से जख्मी हो गए छह माह की सजा और ₹15 का अर्थदंड हुआ जिसमें अपना नाम शिव नाथ पुत्र विश्वनाथ बदल दिया 3 महीने की सजा काटने पर छोड़ दिए गए । कांग्रेस के कार्य में सदैव संलग्न रहे।  सन 1940 41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में 20 मई 1941 को  38(5 ) DIR में 1 वर्ष की सजा और ₹50 का अर्थदंड हुआ 16 दिसंबर 1941 को जिलाधिकारी के आदेश पर छुटे  1942 में जिला लखीमपुर खीरी में रहे ।

                 गजाधर वर्मा आत्मा राम सहाय वर्मा निवासी अचकवापुर थाना मोहनगंज

गजाधर वर्मा जिनका जन्म 20 नवंबर 1918 को तहसील तिलोई के अचकवापुर ग्राम में हुआ था । आपका संपर्क स्थानीय कांग्रेस नेता श्री राम भरोसे श्रीवास्तव से था । मोहना से कक्षा 2 व शाहमऊ से कक्षा 4 पास कर जायस व तिलोई मिडिल स्कूल में शिक्षा पाई। यहां सेनानी विशंभर नाथ (कांटा) तथा सेनानी माता प्रसाद का प्रभाव पड़ा।  तिलोई कांग्रेस कार्यालय पर पुलिस ने कब्जा कर लिया था । गांधी टोपी लगाने और  तिरंगा लेकर चलने में जोखिम थी ।  गुरदयाल कुम्हार  और विपत मुराई  के सहयोग से वर्मा जी कांग्रेस  कार्यालय का ताला तोड़कर कब्जा कर लिया । खबर पाकर अंगेजी सरकार में हडकंप मच गया  । खबर पाकर पुलिस आई और मारपीट कर  तीनों को थाने ले गई वहां भी पिटाई हुई माफ़ी ना मांगने पर हवालात में बंद कर दिया गया। और अगले दिन तीनो लोगो को रायबरेली जेल भेज दिए गए । जहां छह छह माह की सजा हो गई जेल में कोल्हू और चक्की चलाने को मिली जेल सुपरिंटेंडेंट बनारसी दास ने इन पर बहुत अत्याचार किये  एक महीने बाद बस्ती जेल भेजे दिए गए वहां के जेलर की पिटाई करने पर छह माह की सजा और बड़ा दी गयी जेल से छूट कर आने पर शाहमऊ में एक बहुत बड़ी सभा की  जिसमें डा परमत्मादीन सिंह  उन्नाव और बाबू गोकुलराम वर्मा  कानपुर से भाग लेने आये  सन 1932 में लगान बन्दी में स्कूल छोड़करछ महीने की सजा काटी 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में एक वर्ष और  और 50 रूपये के जुर्माने की सजा  पायी  । 50 रूपये जुर्माना न भरने के कारण 3 महीने के और सजा और भुगतनी पड़ी बस्ती जेल में सजा बढ़ जाने के कारण गोरखपुर भेजे गए और फांसीघर में  कई दिनों तक बंद रहे सुभाष  चंद्र बोस ने जिन दिनों सिंगापुर पर हमला किया था वर्मा जी छोड़ दिए गये ।


                                     रामदत्त वैद्य पुत्र कोहली प्रसाद ग्राम अहुरी थाना मोहनगंज

राम दत्त जी जिनका जन्म 1906 में हुआ था आप रहवा प्राइमरी पाठशाला के अध्यापक थे । रामेश्वर सिंह से प्रभावित होकर गांजा भांग की दुकानों पर धरना देने लगे उसी में गिरफ्तार हुए । सन 1932 में 3 माह सजा तथा ₹15 जुर्माना हुआ जेल में तलाशी व परेड का विरोध करने पर मार पड़ी 4 दांत टूट गए जेल में 2 जमादारो  पर पांच ₹5 रूपये का आर्थिक आर्थिक दंड लगाया गया  । और जिला अधिकारी ने उन्हें 4 माह की सजा दे दी जेलर ने इनके साथ क्रूर  व्यवहार किया इनका विवरण समाचार पत्र में प्रकाशित होने पर इंग्लैंड से मिस विलकिन्सन  मामले की जांच करने आई थी जेल अधिकारियों ने नहीं मिलने दिया दोषी  पाए जाने पर जेलर और सुपरिंटेंडेंट का स्थान्तरण  कर दिया गया व्यक्तिगत सत्याग्रह में 1 वर्ष की सजा तथा ₹500 का जुर्माना हुआ राम दत्त जी के खेतों को तालुक्केदारो ने  छीन लिए थे ।

                                शमशेर खान पूरे धना पांडे मजरे मोहना थाना मोहनगंज 

शमशेर खान  इनका जन्म 1899 में हुआ था आजादी के आन्दोलन में भाग लेने के कारण 1931 में 1 वर्ष की कड़ी सजा 15 दिन की कालकोठरी की सजा भी जेल में दी गई आजादी के आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया

रविवार, 5 अगस्त 2018

तिरंगे की शान में रायबरेली में हुआ था देश का पहला बलिदान

तिरंगे झंडे के सम्मान के लिए विश्व की वीरता के इतिहास में एक स्मरणीय बलिदान हुआ ।एक अनपढ़ ग्रामीण वृद्धा के आत्म गौरव की भावना ने अंग्रेजी हुकूमत के फौलादी पंजों का पानी उतार दिया यह था । यह था रायबरेली के सलोन तहसील के करहिया बाजार का गोलीकांड । घटना की तिथि 20 मार्च 1921 मुंशीगंज हत्याकांड से ठीक कुछ दिन बाद का था ।करहिया रियासत का जागीदार बहुत जालिम था जनता का शोषण करने की कला में तो उस समय के सभी जागीदार पारंगत थे । और उसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे । किंतु यह जागीदार जुल्मों के नए-नए और नग्न रूप खोजने में आश्चर्य था । इतिहास का सबसे बड़ा बधिक नादिरशाह की बेरहमी उसके मुकाबले हेच थी ।
20 मार्च 1921 को करहिया बाजार में एक किसान सभा का आयोजन था । क्षेत्रीय किसानों को संगठित करने और रियासत के जागीदार के खिलाफ खुली बगावत के  उद्देश्य से सभा को कुछ किसान नेता संबोधित करने आए थे । झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह इस सभा के मुख्य आयोजक और प्रमुख वक्ता थे।
झुंनकू सिंह इसी रियासत के एक साधारण किसान थे। सैकड़ों किसानों को लेकर झुंनकू सिंह ने अपनी आवाज उस दिन अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए गढी को घेर लिया । सलोन थाने की पुलिस रियायत के जागीरदार की मदद को पहुंची उसने झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया । किंतु उन्हें वह वहां से ले ना जा सकी । भीड़ ने अपने नेताओं को पुलिस से छीन लिया । इस पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 2 किसान शहीद हुए और 5 घायल हो गए । लेकिन भीड़ से टस से मस ना हुई । थानेदार घबराकर सदल बल घटनास्थल से रफूचक्कर हो गया ।आधी रात से लेकर सुबह तक हजारों किसान बैठे रहे और भाषण होते रहे। पुलिस छिपी रही किंतु उसने घटना की सूचना सदर पहुंचा दी थी ।
शान न इसकी जाने पाए चाहे जान भले ही जाए
सुबह होते-होते जिला कलेक्टर और पुलिस कप्तान अतिरिक्त टुकड़ी लेकर मैदान में डटे । बड़े अधिकारियों को अमले के साथ देखकर लोगों का उत्साह और बढ़ा । सारा आकाश अत्याचार विरोधी नारों से गूंज उठा तिरंगे को हाथ में लेकर झुंनकू सिंह ने वंदे मातरम का जोरदार नारा लगाया ।
हजारों किसानों के स्वर से गूंजते नारों से अँग्रेजी हुक्मरान झेंप गए इस को मिटाने के लिए थानेदार झुंनकू सिंह के हाथ से तिरंगा छीनने के लिए झपट पड़े । तिरंगे झंडे के अपमान का खतरा देख कर वह झण्डा थामे थामे थानेदार से लिपट गया हुआ था । थानेदार ने दबोच कर जमीन पर पटक दिया लेकिन साथ ही साथ वह भी चारों खाने चित होकर कर गिर गया ।इस हंगामे में झंडा एक तरफ को खिसका तो उसे उठाने के लिए पुलिस वाले लपके मगर उनके लपकने से  पहले सभा में भाग लेने आई करहिया बाजार सलोन से आयी वृद्धा भगतिन झण्डे से लिपट गई । और तिरंगें की शान बरकरार रखी । इस बीच क्या हुआ खिसियाया हुआ  थानेदार उठा और उठते ही उसने पिस्तौल दाग दी गोली झुंनकू सिंह के छाती में लगी  और वह शहीद हो गए। तिरँगा झंडा अभी तक मां भगतन के हाथों में था । थानेदार और सिपाहियों की शक्ति भी जब झंडा छीनने में असफल रही तो खुद थानेदार की गोली मां भगतन के सीने में धंस गई । बाद में माँ भगतिन का शव जब चिता पर रखा गया तब भी वही तिरँगा झण्डा उनसे लिपटा हुआ था । बाद में अँग्रेजी सरकार द्वारा मां भगतन का उनके बलिदान को कम करने की दृष्टि से सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि करहिया बाजार में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति मारा गया और 7 घायल हुए उनको गिरफ्तार कर लिया गया । जिसमें से जेल में जाने से झुंझनू सिंह के घाव सड़ जाने से जेल में मृत्यु हो गई और बृजपाल सिंह को 4 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।

तिरंगे की शान में रायबरेली में हुआ था देश का पहला बलिदान

तिरंगे झंडे के सम्मान के लिए विश्व की वीरता के इतिहास में एक स्मरणीय बलिदान हुआ ।एक अनपढ़ ग्रामीण वृद्धा के आत्म गौरव की भावना ने अंग्रेजी हुकूमत के फौलादी पंजों का पानी उतार दिया यह था । यह था रायबरेली के सलोन तहसील के करहिया बाजार का गोलीकांड । घटना की तिथि 20 मार्च 1921 मुंशीगंज हत्याकांड से ठीक कुछ दिन बाद का था ।करहिया रियासत का जागीदार बहुत जालिम था जनता का शोषण करने की कला में तो उस समय के सभी जागीदार पारंगत थे । और उसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे । किंतु यह जागीदार जुल्मों के नए-नए और नग्न रूप खोजने में आश्चर्य था । इतिहास का सबसे बड़ा बधिक नादिरशाह की बेरहमी उसके मुकाबले हेच थी ।
20 मार्च 1921 को करहिया बाजार में एक किसान सभा का आयोजन था । क्षेत्रीय किसानों को संगठित करने और रियासत के जागीदार के खिलाफ खुली बगावत के  उद्देश्य से सभा को कुछ किसान नेता संबोधित करने आए थे । झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह इस सभा के मुख्य आयोजक और प्रमुख वक्ता थे।
झुंनकू सिंह इसी रियासत के एक साधारण किसान थे। सैकड़ों किसानों को लेकर झुंनकू सिंह ने अपनी आवाज उस दिन अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए गढी को घेर लिया । सलोन थाने की पुलिस रियायत के जागीरदार की मदद को पहुंची उसने झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया । किंतु उन्हें वह वहां से ले ना जा सकी । भीड़ ने अपने नेताओं को पुलिस से छीन लिया । इस पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 2 किसान शहीद हुए और 5 घायल हो गए । लेकिन भीड़ से टस से मस ना हुई । थानेदार घबराकर सदल बल घटनास्थल से रफूचक्कर हो गया ।आधी रात से लेकर सुबह तक हजारों किसान बैठे रहे और भाषण होते रहे। पुलिस छिपी रही किंतु उसने घटना की सूचना सदर पहुंचा दी थी ।
शान न इसकी जाने पाए चाहे जान भले ही जाए
सुबह होते-होते जिला कलेक्टर और पुलिस कप्तान अतिरिक्त टुकड़ी लेकर मैदान में डटे । बड़े अधिकारियों को अमले के साथ देखकर लोगों का उत्साह और बढ़ा । सारा आकाश अत्याचार विरोधी नारों से गूंज उठा तिरंगे को हाथ में लेकर झुंनकू सिंह ने वंदे मातरम का जोरदार नारा लगाया ।
हजारों किसानों के स्वर से गूंजते नारों से अँग्रेजी हुक्मरान झेंप गए इस को मिटाने के लिए थानेदार झुंनकू सिंह के हाथ से तिरंगा छीनने के लिए झपट पड़े । तिरंगे झंडे के अपमान का खतरा देख कर वह झण्डा थामे थामे थानेदार से लिपट गया हुआ था । थानेदार ने दबोच कर जमीन पर पटक दिया लेकिन साथ ही साथ वह भी चारों खाने चित होकर कर गिर गया ।इस हंगामे में झंडा एक तरफ को खिसका तो उसे उठाने के लिए पुलिस वाले लपके मगर उनके लपकने से  पहले सभा में भाग लेने आई करहिया बाजार सलोन से आयी वृद्धा भगतिन झण्डे से लिपट गई । और तिरंगें की शान बरकरार रखी । इस बीच क्या हुआ खिसियाया हुआ  थानेदार उठा और उठते ही उसने पिस्तौल दाग दी गोली झुंनकू सिंह के छाती में लगी  और वह शहीद हो गए। तिरँगा झंडा अभी तक मां भगतन के हाथों में था । थानेदार और सिपाहियों की शक्ति भी जब झंडा छीनने में असफल रही तो खुद थानेदार की गोली मां भगतन के सीने में धंस गई । बाद में माँ भगतिन का शव जब चिता पर रखा गया तब भी वही तिरँगा झण्डा उनसे लिपटा हुआ था । बाद में अँग्रेजी सरकार द्वारा मां भगतन का उनके बलिदान को कम करने की दृष्टि से सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि करहिया बाजार में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति मारा गया और 7 घायल हुए उनको गिरफ्तार कर लिया गया । जिसमें से जेल में जाने से झुंझनू सिंह के घाव सड़ जाने से जेल में मृत्यु हो गई और बृजपाल सिंह को 4 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।

सोमवार, 30 जुलाई 2018

रायबरेली का वो एतिहासिक केस जिसमें गणेश शंकर विद्यार्थी जी पर अंग्रेजी सरकार द्वारा लगाये गए जुर्माने को रायबरेली के सेठ कंधई लाल अग्रवाल ने भरा

देश की आजादी में जनपद रायबरेली का विशेष योगदान रहा है यहाँ के आम जनमानस ने आजादी दिलाने में अहम् भूमिका निभाई है रायबरेली जिले  में  आजादी के लिए योगदान और आजादी की लड़ाई में शामिल शूरबीरो के अदम्य साहस की कथाओ को आप तक पहुचाने का ये एक छोटा सा प्रयास है
        जनवरी 1921  मुंशीगंज गोलीकांड  से  ना  केवल रायबरेली बल्कि  पूरा देश  राजनीतिक चेतना से  ओत प्रोत   हो गया  आजादी की लड़ाई में  प्राणोत्सर्ग की भावना आम हो गई  समाचार पत्रों ने प्रायः  एक ही स्वर से   सरदार बीर  पाल  सिंह को  गोली कांड का दोषी ठहराया  सप्ताहिक प्रताप  के  यशस्वी  संपादक  गणेश शंकर विद्यार्थी  ने उक्त कांड की जांच के लिए  अपनी ओर से सर्वश्री  उमाशंकर दीक्षित  पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन  तथा पंडित जगन्नाथ प्रसाद को रायबरेली भेजा  इस जांच की रपट विद्यार्थी जी ने  प्रताप के  19 जनवरी 1921 के अंक में पुनः प्रकाशित की  इलाहाबाद का दैनिक इंडिपेंडेंट  भी पीछे नहीं रहा
       धन और पशुबल के मद में चूर  सरदार वीरपाल सिंह  एमएलसी  आत्मज  सरदार प्रेम सिंह  तालुकेदार  खुरहटी  ने प्रताप और इंडिपेंडेंट को नोटिस दी कि यदि दोनों समाचार पत्र मुंशीगंज हत्याकांड का उन पर किया गया दोषारोपण वापस नहीं लेंगे  तो उन पर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी 
         इंडिपेंडेंट पत्र ने तो विवरण प्रकाशित किया था वह सप्ताहिक प्रताप की सूचनाओं के आधार पर ही था उसके पास स्वयं के एकत्रित सबूत साक्ष्य न थे अतः नोटिस मिलने के बाद इंडिपेंडेंस क्षमा याचना कर ली किंतु प्रताप के निर्भीक संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जी तथा उनके प्रकाशक  पंडित शिव नारायण मिश्र ने सरदार वीरपाल की नोटिस  का मुंहतोड़ उत्तर दिया  
           उत्तर में उन्होंने लिखा आपकी नोटिस के उत्तर में हम आपको सूचित कर रहे हैं कि हमने जो कुछ भी लिखा है उस संबंध में हम पूरी तरह न्याय के पथ पर हैं हमारे पास अपने विचारों की पुष्टि के लिए पर्याप्त साक्ष्य है  अभियोजन के  संबंध में सच्चाई यह है कि जनता हमारा अखबार लेकर आपके दरवाजे पर चिल्लाएगी मैं समझता हूं कि इंडिपेंडेंट के पास समय रहते पर्याप्त तथ्य   नहीं पहुंच पाए जिसे उन्होंने क्षमा याचना कर ली    .
              प्रताप के संपादक और प्रकाशक का उक्त उत्तर पा कर  बीरपाल सिंह बौखला गया  अंग्रेजी अधिकारियों की शह पाकर  उसने जिला रायबरेली के सर्किट मजिस्ट्रेट की अदालत में सरदार वीरपाल सिंह बनाम गणेश शंकर विद्यार्थी एडिटर प्रताप कानपुर व् शिव नरायण मिश्र पब्लिशरफीलखाना  बाजार कानपुर पर जुर्म धारा  499/500 ताजीरातहिन्द नामक  ऐतिहासिक मुकदमा कायम कराया.
       सरदार बीरपाल सिंह की ओर से मुकदमे की पैरवी मुं अफजल खां बार- एट- ला  ने की  उक्त सनसनीखेज मुकदमे में प्रताप की पैरवी करने के लिए चोटी के वकीलों ने अपनी सेवाये समर्पित की थी जिनमें प्रमुख थे  श्री बाबू किसमतराय जगधारी.( रायबरेली  ) हरिमोहन बार-एट- ला ( इलाहाबाद ) विशंभर नाथ बाजपेई (उन्नाव) पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र (भूतपूर्व चीफ जस्टिस हैदराबाद ) प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा (झांसी) पंडित प्रकाश मिश्रा (लखनऊ ) जगन्नाथ चौधरी (उन्नाव ) 
            आधुनिक हिंदी के जन्मदाता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी रायबरेली ने प्रख्यात साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा को मुकदमे की पैरवी के लिए विशेष रूप से  बुलाया था यह शहीदों की  खून की प्रतिष्ठा का प्रश्न था  प्रताप मानहानि केस में प्रताप की ओर से  जनपद के विभिन्न ग्रामों के  65 गवाहों ने गवाही दी इन गवाहों में अधिकांश  प्रत्यक्षदर्शी किसान थे  दो महिलाएं श्रीमती जनकिया विधवा  बुधई तथा श्रीमती बसंता  दोनों गवाह थी 
       जिन  राष्ट्रीय नेताओं ने इस मुकदमे में साक्ष्य देकर गणेश जी के अग्रलेख  का समर्थन किया  उसमें पंडित मदन मोहन मालवीय पंडित मोतीलाल नेहरु पंडित जवाहरलाल नेहरु पंडित विशंभर दयाल त्रिपाठी( नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी ) सी एस रंगाअय्यर दैनिक वर्तमान के संपादक रमाशंकर अवस्थी आदि प्रमुख थे   रायबरेली नगर के डाक्टर वकील किसान नेता व्यापारी म्युनिसिपल कमिश्नरने विद्यार्थी जी के पक्ष का प्रबल समर्थन किया था  इसमें बाबू देवी प्रसाद वकील बाबू  चित्रगुप्त प्रसाद वकील मीर वाजिद अली  म्युनिसिपल  कमिश्नर गिरधारी लाल अग्रवाल बाबू किसमत राय पण्डित मार्तण्ड दत्त वैध पंडित अवन्तिका प्रसाद पण्डित माता प्रसाद मिश्र सेठ कंधई लाल अग्रवाल प्रमुख थे 
         5 माह की लंबी बहस  के बाद 30 जुलाई 1921 को  प्रताप मानहानि केस का निर्णय मजिस्ट्रेट मकसूद अली खान ने  71 पन्नो  में दिया जैसा कि आशंका थी   की न्यायप्रियता का ढोंग रचने वाले अंग्रेजो  ने एक हत्यारे का साथ दिया और गणेश जी तथा पंडित शिव नारायण मिश्र को दोनों को  धाराओं के तहत  छह- छह माह की जेल और एक -एक  हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई गई
      विद्यार्थी जी का जुर्माना सेठ कन्हई लाल अग्रवाल ने भर दिया किंतु शिव नारायण मिश्र ने सेशन जज एफ जी शेरिंग  की अदालत में फैसले के विरुद्ध अपील कर दी  लेकिन यह अपील 30 जुलाई 1921 को खारिज कर दी गई अपील खारिज किए जाने का समाचार जैसे ही अदालत से बाहर खड़ी भीड़ को मिला  वह उत्तेजित  हो गई  रास्ट्रीय  नारों के साथ गणेश शंकर विद्यार्थी तथा शिव नारायण मिश्र की जय जयकार करने लगी ने भीड़ इतने आक्रोश में थी  कि गणेश जी को 1 घंटे तक अदालत से बाहर नहीं लाया जा सका उत्तेजित भीड़ से आशंकित होकर जिला जज नानावती ने फ़ौरन अपने बंगले  से ही जमानत स्वीकार  कर ली  उत्साह और साहस से जनता ने  राष्ट्रीय नेताओं की जय के नारों गणेश जी की जयऔर शिव नरायण मिश्र के  जय का नारा लगाया जो अभूतपूर्व दृश्य था
        कानपुर में विद्यार्थी जी ने १९१३ से साप्ताहिक ‘प्रताप’ के माध्यम से न केवल क्रान्ति का नया प्राण फूँका बल्कि इसे एक ऐसा समाचार पत्र बना दिया जो सारी हिन्दी पत्रकारिता की आस्था और शक्ति का प्रतीक बन गया। प्रताप प्रेस में कम्पोजिंग के अक्षरों के खाने में नीचे बारूद रखा जाता था एवं उसके ऊपर टाइप के अक्षर। ब्लाक बनाने के स्थान पर नाना प्रकार के बम बनाने का सामान भी रहता था। पर तलाशी में कभी भी पुलिस को ये चीजें हाथ नहीं लगीं। विद्यार्थी जी को १९२१ से १९३१ तक पाँच बार जेल जाना पड़ा और यह प्राय: ‘प्रताप‘ में प्रकाशित किसी समाचार के कारण ही होता था। विद्यार्थी जी ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की। उनके पास पैसा और समुचित संसाधन नहीं थे, पर एक ऐसी असीम ऊर्जा थी, जिसका संचरण स्वतंत्रता प्राप्ति के निमित्त होता था। ‘प्रताप‘ प्रेस के निकट तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया, जिसमें सभी जब्तशुदा क्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थी। यह ‘प्रताप’ ही था जिसने दक्षिण अफ्रीका से विजयी होकर लौटे तथा भारत के लिये उस समय तक अनजान महात्मा गाँधीकी महत्ता को समझा और चम्पारण सत्यग्रह  की नियमित रिपोर्टिंग कर राष्ट्र को गाँधी जी जैसे व्यक्तित्व से परिचित कराया। चौरी-चौरा तथा काकोरी काण्ड के दौरान भी विद्यार्थी जी ‘प्रताप’ के माध्यम से प्रतिनिधियों के बारे में नियमित लिखते रहे। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित सुप्रसिद्ध देशभक्ति कविता पुष्प की अभिलाषा प्रताप अखबार में ही मई १९२२ में प्रकाशित हुई। बालकृष्ण शर्मा नवीनसोहन लाल द्विवेदी, सनेहीजी, प्रताप नारायण मिश्र इत्यादि ने प्रताप के माध्यम से अपनी देशभक्ति को मुखर आवाज दी।
वस्तुत: प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ ऐसी थी कि जिसमें छिपकर रहा जा सकता था तथा फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। बनारस षडयंत्र से भागे सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य प्रताप अखबार में उपसम्पादक थे। बाद में भट्टाचार्य और प्रताप अखबार से ही जुड़े पं0 राम दुलारे त्रिपाठी को काकोरी काण्ड में सजा मिली। भगत सिंह ने तो ‘प्रताप‘ अखबार में बलवन्त सिंह के छद्म नाम से लगभग ढाई वर्ष तक कार्य किया। सर्वप्रथम दरियागंज, दिल्ली में हुये दंगे का समाचार एकत्र करने के लिए भगत सिंह ने दिल्ली की यात्रा की और लौटकर ‘प्रताप’ के लिए सचिन दा के सहयोग से दो कालम का समाचार तैयार किया। चन्द्रशेखर आजाद से भगत सिंह की मुलाकात विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में करायी थी, फिर तो शिव वर्मा सहित तमाम क्रान्तिकारी जुड़ते गये। यह विद्यार्थी जी ही थे कि जेल में भेंट करके क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा छिपाकर लाये तथा उसे ‘प्रताप‘ प्रेस के माध्यम से प्रकाशित करवाया। जरूरत पड़ने पर विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की माँ की मदद की और रोशन सिंह की कन्या का कन्यादान भी किया। यही नहीं अशफाकउल्ला खान की कब्र भी विद्यार्थी जी ने ही बनवाई।
विद्यार्थी जी का ‘प्रताप‘ तमाम महापुरूषों को भी आकृष्ट करता था। १९१६ में लखनऊ कांग्रेस के बाद महात्मा गाँधी और लोकमान्य तिलक इक्के पर बैठकर प्रताप प्रेस आये एवं वहाँ दो दिन रहे।
दैनिक प्रताप समाचार पत्र

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

जायसी कृति "कहरानामा" और "मसलानामा" जिसकी पाण्डुलिप तिलोई के सतनामी संत दूलनदास के पुत्र और जायस के पूर्व मंत्री के पुश्तैनी विरासत थी


मलिक मुहम्मद जायसी (१४७७-१५४२) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे
कहरानामा का रचना काल 947 हिजरी बताया गया है। यह काव्य ग्रंथ कहरवा या कहार गीत उत्तर प्रदेश की एक लोक- गीत पर आधारित में कवि ने कहरानाम के द्वारा संसार से डोली जाने की बात की है।
इनके अतिरिक्त 'महरी बाईसी' तथा 'मसलानामा' भी आपकी ही रचनाएँ मानी जाती हैं परन्तु जायसी की प्रसिद्धि का आधार तो 'पद्मावत' महाकाव्य ही है। जायसी की अनेक रचनाये जो आज तक प्रकाशित नही हुई है उसी में से एक मसलानामा और कहरामा भी थी

अन्य कृतियाँ

जायसी की मुख्य कृतियों के अलावा इनकी अतिरिक्त 'मसदा', , 'मुकहरानामा' व 'मुखरानामा', 'मुहरानामा', या 'होलीनामा', 'खुर्वानामा', 'संकरानामा', 'चम्पावत', 'मटकावत', 'इतरावत', 'लखरावत', 'मखरावत' या 'सुखरावत' 'लहरावत', 'नैनावात', 'घनावत', 'परमार्थ जायसी' और 'पुसीनामा' रचनाएँ भी जायसी की बतायी जाती हैं। किन्तु इनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
अमर बहादुर सिंह अमरेश जिन्होंने रानाबेनी माधव और राज कलस जैसे महान रचनाये की है उन्हें स्थानीय लोगो से कुछ पाण्डुलिप प्राप्त हुई जिसको उन्होंने प्रकशित किया जायसी के ग्रन्थों में प्रथम पाण्डुलिप उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सरकार के श्रम व् सामुदायिक विकास उप मंत्री एवं जायस क्षेत्र के विधायक सैय्यद वसी नकवी साहब से प्राप्त हुई थी ।यह उनकी माता जी के पास सुरक्षित थी जो परिवार में परम्परागत चली आ रही "धाती" के रूप में थी । माता जी देहावसान जे बाद यह प्रति श्री नकवी साहब के हाथ लगी । जायसी के ग्रंथों की द्वितीय पांडुलिपि  लेखक अमर बहादुर सिंह अमरेश को सेमरौता जूनियर हाई स्कूल के रिटायर्ड प्रधानाध्यापक तिलोई निवासी सतनामी सम्प्रदाय के श्री  त्रिभुवन प्रसाद त्रिपाठी के पास से प्राप्त हुई। यह पांडुलिपि सतनामी संप्रदाय में चली आने वाली परंपरागत संपत्ति के रूप में थी। सतनामी सम्प्रदाय के गुरु जगजीवन साहब कोटवा बाराबंकी के शिष्य महात्मा दूलन दास के पुत्र श्री राम बक्स दास की प्रेरणा से यह लिखी गई थी इसे भी "मन दास" ने सन 1869 वि.  में लिखा था । बहुत समय तक यह सत्यनामी महात्माओं के पास घूमती रही बाद में यह प्रति पंडित त्रिभुवन प्रसाद जी त्रिपाठी के गुरु महात्मा चंद्र भूषण जी के हाथ लगी यह उनके पास भी काफी समय तक रही तत्पश्चात गुरु जी की कृपा से लेखक अमरेश  को मुद्रण के लिए प्राप्त हो गई ।इस पांडुलिपि में भी प्रथम पांडुलिपि की भाँति "पद्मावती "अखरावती" "कहरानामा" और "मसलानामा" संग्रहित है । इस लिपि में कैथी मिश्रित हिंदी है जिन्हें कैथी भाषा का अच्छा ज्ञान ना हो उन्हें इसे पढ़ने में कठिनाई पड़ेगी ।अक्षर बहुत सुंदर और स्याही काली चमकदार है ।लाल स्याही का प्रयोगपृष्ठों को सुन्दर बनाने के लिए किया गया है।  पांडुलिपि का प्रथम पृष्ठ ना होने से प्रारंभिक शब्द नहीं मिलते हैं पद्मावती के अंत में इतिश्री पद्मावती कथा संपूर्ण शुभमस्तु शुभ इसके पश्चात नीचे लिखा है श्री मनदास इससे स्पष्ट है कि इस पांडुलिपि के लेखक श्री मन दास जी हैं श्री मान दास जी कौन थे कहां के रहने वाले थे इस संबंध में बहुत कम ज्ञात हो सका है किंतु उन्होंने किस प्रकार जायसी की पांडुलिपि प्राप्त किया । इस प्रतिलिपि की यह कहानी बहुत रोचक है सतनामी संप्रदाय के आदि गुरु श्री गुरु जगजीवन साहब कोटवा धाम के चार शिष्य थे । गोसाई दास, दूलन दास, खेम दास ,तथा देवीदास यही 4 गद्दियां सतनामी संप्रदाय के चार पावे कहे जाते हैं । महात्मा दूलन दास ने 90 वर्ष की आयु में दूसरा विवाह किया था। जिससे रामबक्स नामक पुत्र  की उत्पत्ति हुई श्री रामबक्स जी अच्छे कवि एवं जायसी ग्रंथों के संकलनकर्ता हैं उन्होंने जायसी के ग्रंथों की प्रतिलिप की उसी पांडुलिपियां प्रतिलिपि है जिसे श्री मानदास जी ने लिखी है इसका प्रमाण लेखक मानदास जी ने स्वयं पद्मावती के अंत में पांडुलिपि लिखने का कारण बताते हुए लिखा है
सतगुरु समरथ साहेब राम बकस प्रमान है ।
तिन लिखियो ग्रन्थ पद्मावती परमान है ।।
साहेब राम बकस कह दीना ।
लिख पद्मावत पूरन किना ।।
इससे प्रतीत होता है कि मन दास की पांडुलिपि  200 वर्षों से सतनामी संतों के साथ घूमती रही लगभग 100 वर्ष बाद यह महात्मा चंद्र भूषण दास को प्राप्त हुई है। वर्तमान पंडित त्रिभवन प्रसाद जी त्रिपाठी इन्हीं महात्मा चंद्र भूषण दास जी के शिष्य हैं और यह पांडुलिपि अब उनके पास सुरक्षित है ।
दोनों उद्धरणों से मेरे कथन की पुष्टि हो जाती है इस पांडुलिपि के लेखक श्री मानदास सतनामी संप्रदाय के थे । उन्होंने अपने गुरु रामबक्स साहब के आदेश से इसकी प्रतिलिपि थी यह पांडुलिपि सन 1879 की है। जिसकी सूचना लेखक श्री मानदास के उन्हीं दो पृष्ठों वाले आत्मनिवेदन में मिलती हैं
संवत अठारह सौ ओनहत्तर लिखा पद्मावत कथा ।
पाण्डुलिप जो प्राप्त हुई

गुरुवार, 31 मई 2018

संत श्री जगजीवन साहेब कोटवा बाराबंकी

संत श्री जगजीवन साहेब का जन्म बाराबंकी जिले में घाघरा नदी तट की ग्राम सरदार के एक चंदेल क्षत्रिय परिवार में संवत 1727 विक्रमी माघ शुक्ल सप्तमी दिन मंगलवार (7 फरवरी 1670 ईस्वी) को प्रातः काल की बेला में हुआ था। पूर्व जन्म संस्कारों के प्रतिफलन में बालपन से ही उनमें सात्विक स्वभाव, प्राणियों से प्रेम और साधु सेवा का भाव उदय हुआ। किशोरावस्था पहुंचते ही उन्होंने गुरुसडी - गोंडा के प्रसिद्ध संत विशेश्वर पुरी से दीक्षा और मंत्र लेकर साधना रथ हो गए। नाम जप से प्रारंभ कर अजपा जप, सूरत साधना व निर्गुण ब्रह्म की उपासना की ओर वह बढ़ते चले गए। ग्रहस्थ जीवन अपना कर भी गहरी लगन, तन्मयता, शुद्ध सात्विक जीवन व समर्पण भाव के बल पर वे प्रायः समाधि और ज्योतित ब्रह्मानुभूति में डूब जाते थे। उनकी उच्च आध्यात्मिकता और तेजस्विता से प्रभावित हो अनेक भक्ति निकट जुड़ने लगे। 38 वर्ष की आयु तक संत श्री की ख्याति दिग-दिगंत में फैल चुकी थी। उस समय तक उनके 87 मुख्य शिष्य, आध्यात्म की प्रबल धारा में डूब, सतनाम पंथ के प्रसार में जो चुके थे, जन्म स्थान में साधना में विघ्न पाकर संत श्री कोट वन (वर्तमान कोटवाधाम) में आ विराजे और जीवन पर्यंत यही रहे। समर्थ गुरु ने भ्रमित समाज को जागृत करने और सच्चे धर्म की ओर मोड़ने के लिए "मूल गद्दी कोटवाधाम" के अंतर्गत चार आधार स्तंभ (चार पावा) स्थापित किया। श्री गोसाई दास जी (कमोली धाम), श्री दुलन दास जी (धर्मे धाम), श्री देवी दास जी (पुरवा धाम) पूरे देवीदास और श्री ख्याम दास जी (मधनापुर धाम), संत श्री द्वारा घोषित आदि महंत बने। संत श्री के समान यह सभी उच्च कोटि के गृहस्थ साधक थे। एक सतनामी ग्रंथ के अनुसार -
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जग जीवन धारा सलिल, दूलन दास जहाज।
देवीदास केवट सरिस, तारयो सकल समाज।।
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इन चार स्तंभों के अतिरिक्त साधना स्तर के अनुसार 14 गद्दीधर, 36 भजनिया, 33 सुमिरिनिहा महंतों व भक्तों की श्रंखला खड़ी हो गई जो उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए थे। संत श्री ने साधना उपलब्धि को सराहा, कुल और वर्ण को नहीं। इसी कारण उन्होंने कुर्मी, कोरी, धुनिया, मुराई, रैदास, कायस्थ, बनिया, यादव, पंजाबी आदि सभी जातियों और मुस्लिम वर्ग के  सतनाम भक्ति धारा से अनुप्रमाणित भक्तों को महंत गद्दीधर के पद दिया। समर्थ गुरु जगजीवन साहब ने जटिल पूजा पाठ, मिथ्या कर्मकांड, सकाम तीर्थ स्नान और यज्ञ-पुरश्चरण के स्थान पर शुद्ध जीवन अपना कर निस्वार्थ भाव से माया-लिप्सा से दूर रहकर नाम-जप का उपदेश दिया। ईश्वर प्राप्ति व मन की शांति के लिए बन बन भटकने के स्थान पर गृहस्थ रूप में रहकर भी ममत्व, अहंकार एवं इंद्रिय दासता से परे हट सार्थक जीवन जिया जा सकता है और उच्चतम साधना की जा सकती है यही उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ किया। भक्तों पर कृपा कर उन्हें भी उसी मार्ग में आगे बढ़ा सूरत साधना में रत कर दिया। समर्थ गुरु एवं शिष्यों की उच्च साधना के फल स्वरुप अनेक अनहोनी घटनाएं जन जन को देखने को मिली, जो कीरत सागर नामक ग्रंथ में वर्णित है। ये प्रकट करती है कि साधक ईश्वर के समान सामर्थवान बन जाता है, एवं करुणा वश उन्हें प्रकट कर देता है। संत श्री का सारा जोर सहज निर्मल जीवन जीने, माया और आसक्ति में न फंसने, नाम जप का आश्रय ले सूरत ध्यान में डूब जाने, एवं साधु सेवा व सत्संग पर दिया गया है  वह परम तत्व सातवें लोक में ना होकर जन जन के अंतर स्थल में समाया है, इसीलिए बाहर भटकने के बजाय सारी शक्तियों को अंतर्मुखी कर हृदय स्थल में उसे खोजने, उसको पाने की गहरी ललक जगाने और गहनतम व्याकुलता के बल पर उस तक पहुंचा जा सकता है। जिसमे "स्व" व देहभाव पूर्ण रुप से विगलित हो शून्यमय हो जाता है। उसी शून्य दशा में सीमातिक्रमण हो परम सत्ता का अवतरण होता है  अचानक जीवन का स्वरुप बदल जाता है  अलौकिक ज्योति के दर्शन कर भक्त परम आनंद में डूब जाता है  ऐसा मिलन होने पर सृष्टि का कण-कण ईश्वर में लगने लगता है। प्रारंभ में यह दशा क्षणिक होती है परंतु भक्त साधना के बल पर उसे दृढतर कर स्थायित्व देता है। संसार से भागकर, उससे लड़कर, उसे नहीं जीता जा सकता है। आखिर वह भी तो उसी परमसत्ता की रचना है, उसी का अंश रूप है। छोड़ना "मन" का धर्म है नाकी शरीर का इसलिए दूर हट कर भी न "मैं" छूटता है, न माया और न इंद्रिय सुख। मन को जकड़ कर बांध लिया तो घर संसार में रहकर भी क्या बिगड़ेगा? संत जगजीवन साहब ने गृहस्थो से कहा -
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अल्प आहार, स्वल्प ही निद्रा, दया क्षमा प्रभु प्रीत।
शील संतोष सदा निरवाहो, है वह त्रिगुणातीत।।
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संत श्री ने 27 ग्रंथ लिखवाएं, जिन्हें उत्तराधिकारी संतों द्वारा 13 स्वतंत्र व 14 लघु ग्रंथों को 5 में संयुक्त कर 18 ग्रंथ बताए गए हैं। उनमें से "अघबिनास" प्रमुख है। जो कि साधना पंथ का मार्गदर्शक है। इसे संत श्री ने शिष्य, विष्णुदास मुल्तानी के द्वारा सन 1721-23 ईसवी में लिखवाया। इसमें भक्ति, वैराग्य, सगुण - निर्गुण और मोह - माया, लिप्सा आदि का विवेचन है। जो कि चार संवादों के मध्य पिरोया है ..... । (SSD/३१/०५/१८/संकलित अंश "अघबिनास" ग्रंथ आमुख)
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जय जगजीवन, जय सतनाम!
अघम उद्धारन, श्री कोटवाधाम!!

तिरगें को नमन

झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत  भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम  ऐ शहीदों आप क...