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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

मिलिए इस दुनिया की सबसे खूबसूरत और बहादुर महिलाओं से

आइये आज आपको इस दुनिया की सबसे खूबसूरत और बहादुर महिलाओं से मिलवाते है जहां महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाता है, वहां किसी एसिड अटैक सरवाइवर का उस सदमे से उबरकर नए सिरे से जिंदगी शुरू करना हिम्मत का काम है। कुछ ऐसा ही जज्बा तेजाब हमलों की शिकार महिलाओं ने कैफे खोलकर दिखाया है।
शिरोज हैंग आउट देश का पहला रेस्ट्रोरेंट जो की आगरा में खोला गया उसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इन महिलाओं से मिलकर इन्हें लखनऊ में खोलने का आग्रह किया और महिला कल्याण विभाग से इन्हें जगह मुहेया करायी  ये कैफे
लखनऊ के बाबा भीम राव अम्बेडर स्मृति स्थल के सामने और 1090 चौराहे के नजदीक है इसे शुरू करने का उद्देश्य इन्हें समाज के साथ फिर से जोड़ना है। इसके जरिये अतीत से उठकर अपने जीवन के नए मायने तलाश रहीं इन आत्मविश्वासी महिलाओं ने अपने जैसे लोगों के साथ ही समाज को भी सीख दी
है।मेरा इन बहादुर महिलाओं को दिल से सलाम और हमें आप से मिलकर वो ख़ुशी मिली जिसे शब्दों में बांध पाना मेरे बस में नही है
सरकारों से निवेदन हैं मेरा की कोर्ट के आदेश जिस में एसिड तेजाब बेचने पर रोक है उसको कड़ाई से पालन कराये

रविवार, 29 अप्रैल 2018

विपश्यना वो ध्यान विधि जिसे भगवान बुद्ध ने किया पुनर्जीवित

क्या है विपश्यना :विपश्यना एक प्राचीन ध्यान विधि है जिसे भगवान बुद्ध ने पुनर्जीवित किया। यह एकमात्र ऐसी चमत्कारिक ध्यान विधि है जिसके माध्यम से सबसे ज्यादा लोगों ने बुद्धत्व को प्राप्त किया या ज्ञान को प्राप्त किया। वर्तमान में विपश्यना का जो प्रचलित रूप है, उस पर हम किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।

 

विपश्यना आत्मनिरीक्षण की एक प्रभावकारी विधि है। इससे आत्मशुद्धि होती है। यह प्राणायाम और साक्षीभाव का मिला-जुला रूप है। दरअसल, यह साक्षीभाव का ही हिस्सा है। चिरंतन काल से ऋषि-मुनि इस ध्यान विधि को करते आए हैं। भगवान बुद्ध ने इसको सरलतम बनाया। इस विधि के अनुसार अपनी श्वास को देखना और उसके प्रति सजग रहना होता है। देखने का अर्थ उसके आवागमन को महसूस करना।

 

कैसे करें विपश्यना :विपश्यना बड़ा सीधा-सरल प्रयोग है। अपनी आती-जाती श्वास के प्रति साक्षीभाव। प्रारंभिक अभ्यास में उठते-बैठते, सोते-जागते, बात करते या मौन रहते किसी भी स्थिति में बस श्वास के आने-जाने को नाक के छिद्रों में महसूस करें। जैसे अब तक आप अपनी श्वासों पर ध्यान नहीं देते थे लेकिन अब स्वाभाविक रूप से उसके आवागमन को साक्षी भाव से देखें या महसूस करें कि ये श्‍वास छोड़ी और ये ली। श्‍वास लेने और छोड़ने के बीच जो गैप है, उस पर भी सहजता से ध्यान दें। जबरन यह कार्य नहीं करना है। बस, जब भी ध्यान आ जाए तो सब कुछ बंद करके इसी पर ध्यान देना ही विपश्यना है।

 

श्वास के अलावा दूसरी स्टेप में आप बीच बीच में यह भी देखें कि यह एक विचार आया और गया, दूसरा आया। यह क्रोध आया और गया। किसी भी कीमत पर इन्वॉल्व नहीं होना है। बस चुपचाप देखना है कि आपके मन, मस्तिष्क और शरीर में किसी तरह की क्रिया और प्रतिक्रियाएं होती रहती है।

सतनामी सम्प्रदाय के संत बाबा दूलन दास धर्मे धाम तिलोई जनपद अमेठी के वो संत जिसके लिखे पदों पर ओशो ने लिखा व्यख्या ग्रन्थ

बाबा दूलन दास धर्मे धाम तिलोई अमेठी

                                                      ओशो

महान विचारक, पूरे विश्व में प्रसिद्ध आध्यत्मिक गुरु ओशो जिन्होंने एक नई विचार धारा चलाई उनके प्रवचन और उनकी लिखी सैकड़ो किताबे है जिस में उनके विचार है ओशो ने हर विषय पर अपने विचार खुल कर रखे उनके अनुवायी उनको भगवान ओशो के नाम से पुकारते है
सत्यनाम पंथ के संस्थापक स्वामी जगजीवन साहब

           रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि और सतनामी सम्प्रदाय के संत बाबा दूलन दास

सत्यनाम पंथ के संस्थापक स्वामी जगजीवन साहब के परम प्रिय शिष्य बाबा दूलन दास का जन्म बार धर्मे के निकट ग्राम सभा सैम्बसी विकास खंड तिलोई जनपद अमेठी में जहाँ उनकी ननिहाल थी सन 1660 ई सवत में क्षत्रिय परिवार में हुआ था | बाबा दूलन दास के पिता का नाम राम सिंह था | इनके पूर्वज तहसील महराजगंज जनपद रायबरेली के ग्राम सभा तदीपुर के निवासी थे |
ग्राम सभा सैम्बसी में बाबा दूलन दास द्वरा कर्म दहन सागर और हनुमान गढ़ी का निर्माण कराया गया | कर्म दहन सागर में स्नान का बड़ा ही महत्व है जो की तीर्थ राज प्रयाग के बराबर है | श्रध्दालु पूर्णिमा को आकर इसमें स्नान करते है |
कुछ समय पश्चात सैम्बसी छोड़ बाबा बार धर्मे में रहने लगे | बाबा द्वरा अनेकानेक भजनों और ,कवितावली , ग्रंथो की रचना की गयी जिसमे प्रमुख रचनाये भ्रम विनाश ,शब्दावली ,दोहावली गंगाअष्टक गज ,उद्धार द्रोपदी चीरहरण ,आदि | बाबा दूलन दास का देहावसान 118 वर्ष की अवस्था में धर्मे धाम में हुआ | बाबा के बाद धर्मे धाम की गद्दी पर उनके पुत्र राम बक्श साहब को बिठाया गया
सिद्धादास बाबा - हरगाव अमेठी
बाबा दूलन दास के 4 प्रमुख शिष्य हुये
1 सिद्धादास बाबा - हरगाव अमेठी
2 घासी दास साहब –नेवादा फैजाबाद ..
3 अल्पदास साहब –जायस अमेठी
4 तोमर दास -तदीपुर रायबरेली
समर्थ संत श्री जगजीवन साहब के निकट शिष्य संत श्री दूलन दास के कुछ पदों की महत्ता पर आचार्य रजनीश ओशो ने एक और व्याख्या ग्रंथ प्रेम रंग रस ओढे चदरिया की रचना की है। यह ग्रंथ सतनामी संप्रदाय की गंभीर आध्यात्मिकता और दर्शन का साक्षात्कार कराते हैं।उन्होंने लिखा "साधारण कवियों की कविता में सिर्फ शब्द होते हैं, उनका सुंदर जमाव, मात्रा छंद व्याकरण सब दृष्टि से पूर्ण होता है, प्राण नहीं होते (परंतु) जब कभी किसी ऋषि की वाणी गूंजी तुम्हारे पास, तो आंखें डबडबा आएंगी, आंसू झड़ने लगेंगे और तुम चौकोगे भी। ऋषि का अर्थ होता है जिसकी वाणी में आत्मानुभूति भी उड़ेली रहती है। ऐसे ही ये दूलन दास के पद है। हो सकता है कि मात्रा और छंद पूरे ना हो, व्याकरण भी ठीक ना हो, भाषा का भी जमाव नहीं होगा। परंतु अंतर्भाव के जमाव की छाया होगी। .......   कितने सीधे साफ छोटे-छोटे बच्चन है, पर  उपनिषदों को मात कर दे। वेद झेपें और कुरान फीकी लगने लगे। इसको और सरलता से कैसे कहोगे?  इसको और सरल नहीं किया जा सकता। एक मत, रस एक मता औराधा।"  यही एक ऋषि की विशिष्टता है।
                                                 
    ©ऋषि कुमार तिलोई जनपद अमेठी 7800704040

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

आज़ादी के 70 साल में कितना बदला देश आज भी वही सवाल है जो दिनकर जी ने आज़ादी के 7 साल बाद अपनी कविता समर शेष में लिखा है

राम धारी सिंह दिनकर जी ने आज़ादी के सात साल बाद एक कविता लिखी थी समर शेष है आज हम आपके लिए उनकी एक ऐसी कविता लाये है जो उन्होंने आजादी के ठीक सात वर्ष बाद लिखी थी। आज़ादी मिलने पर देश में खुशहाली होनी चाहिए थी, प्रेम होना चाहिए था, सोहार्द पनपना चाहिए था। परन्तु हुआ इसका ठीक विपरीत। बाहर से आये अंग्रेजो से युद्ध तो ख़त्म हो गया था पर अपने ही देश में रह रहे अपने ही भाईयों से समर (युद्ध) अभी बाकी था। इसी का वर्णन करते हुए कवी लिखते है –

समर शेष है !

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,
किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?
किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।

फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !
ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!
सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,
दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है ।

मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,
ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार ।

वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है
देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है
माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है

पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज
सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज?

अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?
सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर में?
उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी बता किस घर में

समर शेष है, यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा
और नहीं तो तुझ पर पापिनी! महावज्र टूटेगा

समर शेष है, उस स्वराज को सत्य बनाना होगा
जिसका है ये न्यास उसे सत्वर पहुँचाना होगा
धारा के मग में अनेक जो पर्वत खडे हुए हैं
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अडे हुए हैं

कह दो उनसे झुके अगर तो जग मे यश पाएंगे
अड़े रहे अगर तो ऐरावत पत्तों से बह जाऐंगे

समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे
समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे

समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर
खण्ड-खण्ड हो गिरे विषमता की काली जंजीर

समर शेष है, अभी मनुज भक्षी हुंकार रहे हैं
गांधी का पी रुधिर जवाहर पर फुंकार रहे हैं
समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है
वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है

समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल
विचरें अभय देश में गाँधी और जवाहर लाल

तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना
सावधान हो खडी देश भर में गाँधी की सेना
बलि देकर भी बलि! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे
मंदिर औ’ मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध

आज़ादी को 70 साल बीत गए। पर ‘दिनकर’ की ये कविता मानो आज ही की लिखी हुई तस्वीर ज्ञात होती है।

देश के हालात पर कविता

देश के हालात पर कविता 



देश के देख कर दुर्गति बरबादी आये याद सुभाष और गाँधी
छुट्टा  घूम  रहे  अपराधी  बने  है  नेता  पहने  है खादी
कोटेदार  बेच  रहे  है  रासन  भ्रष्ट हुये शासन प्रशास न
भ्रष्टाचार और अत्याचार का फल फूल रहा है व्यभिचार का
पैसा  अब  भगवान  बना  है पैसा बिना हर काम रुका है
काम   नही   होते   सरकारी   यैसी  फैली  है  बीमारी
बिकतान्याय और बिकतीअस्मत फूटगयी है देशकी किस्मत
हाथ  पसारे  है  महगाई  महंगी   हुई है   आज   पढाई
महंगा  इलाज और महंगी दवाई झूठी बनी सच और भलाई

कहीं ना कोई सुनने वाला रूठ गया है ऊपर वाला
बढ़ती जाये बेरोजगारी बनी समस्या है बेकारी
 
लूट  व्  हिंसा  की  वारदाते  चोरी  फिरौती  की  सौगाते
लुट  रहे  बैंक  खुल  रहे  ताले  गहरी नीदं सोये रखवाले
नेता   देते   झूठा   भासण  गोदामों  में  सड़ता  रासन
बैठे  रोये  बाप और  माई  देता  नही  है  लड़का कमाई
चूल्हा  अलग  बहू घर  आयी हर घर की बस यही लड़ाई
निर्बल  निर्धन अभिशाप बना है देश में इतना पाप बड़ा है
लूट   रहे   है  पीर  फ़क़ीर  रहे  नही  रसखान  कबीर
भाई  से  भाई   लड़ते  है  रिश्ते  तार  तार  करते  है
मुल्ला  पंडित   की  अगुवाई  हिन्दू मुस्लिम करें लड़ाई
राजनिति  की  महिमा  न्यारी  होती इसकी चाल दुधारी
आओं सब मिल अलख जगाये प्रेम मोहब्बत को फैलाये
नफ़रत की  दिवार  ढहाये देश  विकास की ओर ले जाये
मिलकर हम सब करें तरक्की अगवाई फिर करे विश्व की
आवाहनं कर  रहे   सफ़ीर बदलो भारत की  तस्बीर
                       रमजान अली सफ़ीर




तिरगें को नमन

झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत  भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम  ऐ शहीदों आप क...