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बाबा दूलन दास धर्मे धाम तिलोई अमेठी |
ओशो
महान विचारक, पूरे विश्व में प्रसिद्ध आध्यत्मिक गुरु ओशो जिन्होंने एक नई विचार धारा चलाई उनके प्रवचन और उनकी लिखी सैकड़ो किताबे है जिस में उनके विचार है ओशो ने हर विषय पर अपने विचार खुल कर रखे उनके अनुवायी उनको भगवान ओशो के नाम से पुकारते है![]() | |
सत्यनाम पंथ के संस्थापक स्वामी जगजीवन साहब |
रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि और सतनामी सम्प्रदाय के संत बाबा दूलन दास
सत्यनाम पंथ के संस्थापक स्वामी जगजीवन साहब के परम प्रिय शिष्य बाबा दूलन दास का जन्म बार धर्मे के निकट ग्राम सभा सैम्बसी विकास खंड तिलोई जनपद अमेठी में जहाँ उनकी ननिहाल थी सन 1660 ई सवत में क्षत्रिय परिवार में हुआ था | बाबा दूलन दास के पिता का नाम राम सिंह था | इनके पूर्वज तहसील महराजगंज जनपद रायबरेली के ग्राम सभा तदीपुर के निवासी थे |ग्राम सभा सैम्बसी में बाबा दूलन दास द्वरा कर्म दहन सागर और हनुमान गढ़ी का निर्माण कराया गया | कर्म दहन सागर में स्नान का बड़ा ही महत्व है जो की तीर्थ राज प्रयाग के बराबर है | श्रध्दालु पूर्णिमा को आकर इसमें स्नान करते है |
कुछ समय पश्चात सैम्बसी छोड़ बाबा बार धर्मे में रहने लगे | बाबा द्वरा अनेकानेक भजनों और ,कवितावली , ग्रंथो की रचना की गयी जिसमे प्रमुख रचनाये भ्रम विनाश ,शब्दावली ,दोहावली गंगाअष्टक गज ,उद्धार द्रोपदी चीरहरण ,आदि | बाबा दूलन दास का देहावसान 118 वर्ष की अवस्था में धर्मे धाम में हुआ | बाबा के बाद धर्मे धाम की गद्दी पर उनके पुत्र राम बक्श साहब को बिठाया गया
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सिद्धादास बाबा - हरगाव अमेठी |
1 सिद्धादास बाबा - हरगाव अमेठी
2 घासी दास साहब –नेवादा फैजाबाद ..
3 अल्पदास साहब –जायस अमेठी
4 तोमर दास -तदीपुर रायबरेली
समर्थ संत श्री जगजीवन साहब के निकट शिष्य संत श्री दूलन दास के कुछ पदों की महत्ता पर आचार्य रजनीश ओशो ने एक और व्याख्या ग्रंथ प्रेम रंग रस ओढे चदरिया की रचना की है। यह ग्रंथ सतनामी संप्रदाय की गंभीर आध्यात्मिकता और दर्शन का साक्षात्कार कराते हैं।उन्होंने लिखा "साधारण कवियों की कविता में सिर्फ शब्द होते हैं, उनका सुंदर जमाव, मात्रा छंद व्याकरण सब दृष्टि से पूर्ण होता है, प्राण नहीं होते (परंतु) जब कभी किसी ऋषि की वाणी गूंजी तुम्हारे पास, तो आंखें डबडबा आएंगी, आंसू झड़ने लगेंगे और तुम चौकोगे भी। ऋषि का अर्थ होता है जिसकी वाणी में आत्मानुभूति भी उड़ेली रहती है। ऐसे ही ये दूलन दास के पद है। हो सकता है कि मात्रा और छंद पूरे ना हो, व्याकरण भी ठीक ना हो, भाषा का भी जमाव नहीं होगा। परंतु अंतर्भाव के जमाव की छाया होगी। ....... कितने सीधे साफ छोटे-छोटे बच्चन है, पर उपनिषदों को मात कर दे। वेद झेपें और कुरान फीकी लगने लगे। इसको और सरलता से कैसे कहोगे? इसको और सरल नहीं किया जा सकता। एक मत, रस एक मता औराधा।" यही एक ऋषि की विशिष्टता है।
©ऋषि कुमार तिलोई जनपद अमेठी 7800704040
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