क्या है विपश्यना :विपश्यना एक प्राचीन ध्यान विधि है जिसे भगवान बुद्ध ने पुनर्जीवित किया। यह एकमात्र ऐसी चमत्कारिक ध्यान विधि है जिसके माध्यम से सबसे ज्यादा लोगों ने बुद्धत्व को प्राप्त किया या ज्ञान को प्राप्त किया। वर्तमान में विपश्यना का जो प्रचलित रूप है, उस पर हम किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं।
विपश्यना आत्मनिरीक्षण की एक प्रभावकारी विधि है। इससे आत्मशुद्धि होती है। यह प्राणायाम और साक्षीभाव का मिला-जुला रूप है। दरअसल, यह साक्षीभाव का ही हिस्सा है। चिरंतन काल से ऋषि-मुनि इस ध्यान विधि को करते आए हैं। भगवान बुद्ध ने इसको सरलतम बनाया। इस विधि के अनुसार अपनी श्वास को देखना और उसके प्रति सजग रहना होता है। देखने का अर्थ उसके आवागमन को महसूस करना।
कैसे करें विपश्यना :विपश्यना बड़ा सीधा-सरल प्रयोग है। अपनी आती-जाती श्वास के प्रति साक्षीभाव। प्रारंभिक अभ्यास में उठते-बैठते, सोते-जागते, बात करते या मौन रहते किसी भी स्थिति में बस श्वास के आने-जाने को नाक के छिद्रों में महसूस करें। जैसे अब तक आप अपनी श्वासों पर ध्यान नहीं देते थे लेकिन अब स्वाभाविक रूप से उसके आवागमन को साक्षी भाव से देखें या महसूस करें कि ये श्वास छोड़ी और ये ली। श्वास लेने और छोड़ने के बीच जो गैप है, उस पर भी सहजता से ध्यान दें। जबरन यह कार्य नहीं करना है। बस, जब भी ध्यान आ जाए तो सब कुछ बंद करके इसी पर ध्यान देना ही विपश्यना है।
श्वास के अलावा दूसरी स्टेप में आप बीच बीच में यह भी देखें कि यह एक विचार आया और गया, दूसरा आया। यह क्रोध आया और गया। किसी भी कीमत पर इन्वॉल्व नहीं होना है। बस चुपचाप देखना है कि आपके मन, मस्तिष्क और शरीर में किसी तरह की क्रिया और प्रतिक्रियाएं होती रहती है।
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