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सोमवार, 30 जुलाई 2018

रायबरेली का वो एतिहासिक केस जिसमें गणेश शंकर विद्यार्थी जी पर अंग्रेजी सरकार द्वारा लगाये गए जुर्माने को रायबरेली के सेठ कंधई लाल अग्रवाल ने भरा

देश की आजादी में जनपद रायबरेली का विशेष योगदान रहा है यहाँ के आम जनमानस ने आजादी दिलाने में अहम् भूमिका निभाई है रायबरेली जिले  में  आजादी के लिए योगदान और आजादी की लड़ाई में शामिल शूरबीरो के अदम्य साहस की कथाओ को आप तक पहुचाने का ये एक छोटा सा प्रयास है
        जनवरी 1921  मुंशीगंज गोलीकांड  से  ना  केवल रायबरेली बल्कि  पूरा देश  राजनीतिक चेतना से  ओत प्रोत   हो गया  आजादी की लड़ाई में  प्राणोत्सर्ग की भावना आम हो गई  समाचार पत्रों ने प्रायः  एक ही स्वर से   सरदार बीर  पाल  सिंह को  गोली कांड का दोषी ठहराया  सप्ताहिक प्रताप  के  यशस्वी  संपादक  गणेश शंकर विद्यार्थी  ने उक्त कांड की जांच के लिए  अपनी ओर से सर्वश्री  उमाशंकर दीक्षित  पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन  तथा पंडित जगन्नाथ प्रसाद को रायबरेली भेजा  इस जांच की रपट विद्यार्थी जी ने  प्रताप के  19 जनवरी 1921 के अंक में पुनः प्रकाशित की  इलाहाबाद का दैनिक इंडिपेंडेंट  भी पीछे नहीं रहा
       धन और पशुबल के मद में चूर  सरदार वीरपाल सिंह  एमएलसी  आत्मज  सरदार प्रेम सिंह  तालुकेदार  खुरहटी  ने प्रताप और इंडिपेंडेंट को नोटिस दी कि यदि दोनों समाचार पत्र मुंशीगंज हत्याकांड का उन पर किया गया दोषारोपण वापस नहीं लेंगे  तो उन पर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी 
         इंडिपेंडेंट पत्र ने तो विवरण प्रकाशित किया था वह सप्ताहिक प्रताप की सूचनाओं के आधार पर ही था उसके पास स्वयं के एकत्रित सबूत साक्ष्य न थे अतः नोटिस मिलने के बाद इंडिपेंडेंस क्षमा याचना कर ली किंतु प्रताप के निर्भीक संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जी तथा उनके प्रकाशक  पंडित शिव नारायण मिश्र ने सरदार वीरपाल की नोटिस  का मुंहतोड़ उत्तर दिया  
           उत्तर में उन्होंने लिखा आपकी नोटिस के उत्तर में हम आपको सूचित कर रहे हैं कि हमने जो कुछ भी लिखा है उस संबंध में हम पूरी तरह न्याय के पथ पर हैं हमारे पास अपने विचारों की पुष्टि के लिए पर्याप्त साक्ष्य है  अभियोजन के  संबंध में सच्चाई यह है कि जनता हमारा अखबार लेकर आपके दरवाजे पर चिल्लाएगी मैं समझता हूं कि इंडिपेंडेंट के पास समय रहते पर्याप्त तथ्य   नहीं पहुंच पाए जिसे उन्होंने क्षमा याचना कर ली    .
              प्रताप के संपादक और प्रकाशक का उक्त उत्तर पा कर  बीरपाल सिंह बौखला गया  अंग्रेजी अधिकारियों की शह पाकर  उसने जिला रायबरेली के सर्किट मजिस्ट्रेट की अदालत में सरदार वीरपाल सिंह बनाम गणेश शंकर विद्यार्थी एडिटर प्रताप कानपुर व् शिव नरायण मिश्र पब्लिशरफीलखाना  बाजार कानपुर पर जुर्म धारा  499/500 ताजीरातहिन्द नामक  ऐतिहासिक मुकदमा कायम कराया.
       सरदार बीरपाल सिंह की ओर से मुकदमे की पैरवी मुं अफजल खां बार- एट- ला  ने की  उक्त सनसनीखेज मुकदमे में प्रताप की पैरवी करने के लिए चोटी के वकीलों ने अपनी सेवाये समर्पित की थी जिनमें प्रमुख थे  श्री बाबू किसमतराय जगधारी.( रायबरेली  ) हरिमोहन बार-एट- ला ( इलाहाबाद ) विशंभर नाथ बाजपेई (उन्नाव) पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र (भूतपूर्व चीफ जस्टिस हैदराबाद ) प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा (झांसी) पंडित प्रकाश मिश्रा (लखनऊ ) जगन्नाथ चौधरी (उन्नाव ) 
            आधुनिक हिंदी के जन्मदाता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी रायबरेली ने प्रख्यात साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा को मुकदमे की पैरवी के लिए विशेष रूप से  बुलाया था यह शहीदों की  खून की प्रतिष्ठा का प्रश्न था  प्रताप मानहानि केस में प्रताप की ओर से  जनपद के विभिन्न ग्रामों के  65 गवाहों ने गवाही दी इन गवाहों में अधिकांश  प्रत्यक्षदर्शी किसान थे  दो महिलाएं श्रीमती जनकिया विधवा  बुधई तथा श्रीमती बसंता  दोनों गवाह थी 
       जिन  राष्ट्रीय नेताओं ने इस मुकदमे में साक्ष्य देकर गणेश जी के अग्रलेख  का समर्थन किया  उसमें पंडित मदन मोहन मालवीय पंडित मोतीलाल नेहरु पंडित जवाहरलाल नेहरु पंडित विशंभर दयाल त्रिपाठी( नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी ) सी एस रंगाअय्यर दैनिक वर्तमान के संपादक रमाशंकर अवस्थी आदि प्रमुख थे   रायबरेली नगर के डाक्टर वकील किसान नेता व्यापारी म्युनिसिपल कमिश्नरने विद्यार्थी जी के पक्ष का प्रबल समर्थन किया था  इसमें बाबू देवी प्रसाद वकील बाबू  चित्रगुप्त प्रसाद वकील मीर वाजिद अली  म्युनिसिपल  कमिश्नर गिरधारी लाल अग्रवाल बाबू किसमत राय पण्डित मार्तण्ड दत्त वैध पंडित अवन्तिका प्रसाद पण्डित माता प्रसाद मिश्र सेठ कंधई लाल अग्रवाल प्रमुख थे 
         5 माह की लंबी बहस  के बाद 30 जुलाई 1921 को  प्रताप मानहानि केस का निर्णय मजिस्ट्रेट मकसूद अली खान ने  71 पन्नो  में दिया जैसा कि आशंका थी   की न्यायप्रियता का ढोंग रचने वाले अंग्रेजो  ने एक हत्यारे का साथ दिया और गणेश जी तथा पंडित शिव नारायण मिश्र को दोनों को  धाराओं के तहत  छह- छह माह की जेल और एक -एक  हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई गई
      विद्यार्थी जी का जुर्माना सेठ कन्हई लाल अग्रवाल ने भर दिया किंतु शिव नारायण मिश्र ने सेशन जज एफ जी शेरिंग  की अदालत में फैसले के विरुद्ध अपील कर दी  लेकिन यह अपील 30 जुलाई 1921 को खारिज कर दी गई अपील खारिज किए जाने का समाचार जैसे ही अदालत से बाहर खड़ी भीड़ को मिला  वह उत्तेजित  हो गई  रास्ट्रीय  नारों के साथ गणेश शंकर विद्यार्थी तथा शिव नारायण मिश्र की जय जयकार करने लगी ने भीड़ इतने आक्रोश में थी  कि गणेश जी को 1 घंटे तक अदालत से बाहर नहीं लाया जा सका उत्तेजित भीड़ से आशंकित होकर जिला जज नानावती ने फ़ौरन अपने बंगले  से ही जमानत स्वीकार  कर ली  उत्साह और साहस से जनता ने  राष्ट्रीय नेताओं की जय के नारों गणेश जी की जयऔर शिव नरायण मिश्र के  जय का नारा लगाया जो अभूतपूर्व दृश्य था
        कानपुर में विद्यार्थी जी ने १९१३ से साप्ताहिक ‘प्रताप’ के माध्यम से न केवल क्रान्ति का नया प्राण फूँका बल्कि इसे एक ऐसा समाचार पत्र बना दिया जो सारी हिन्दी पत्रकारिता की आस्था और शक्ति का प्रतीक बन गया। प्रताप प्रेस में कम्पोजिंग के अक्षरों के खाने में नीचे बारूद रखा जाता था एवं उसके ऊपर टाइप के अक्षर। ब्लाक बनाने के स्थान पर नाना प्रकार के बम बनाने का सामान भी रहता था। पर तलाशी में कभी भी पुलिस को ये चीजें हाथ नहीं लगीं। विद्यार्थी जी को १९२१ से १९३१ तक पाँच बार जेल जाना पड़ा और यह प्राय: ‘प्रताप‘ में प्रकाशित किसी समाचार के कारण ही होता था। विद्यार्थी जी ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की। उनके पास पैसा और समुचित संसाधन नहीं थे, पर एक ऐसी असीम ऊर्जा थी, जिसका संचरण स्वतंत्रता प्राप्ति के निमित्त होता था। ‘प्रताप‘ प्रेस के निकट तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया, जिसमें सभी जब्तशुदा क्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थी। यह ‘प्रताप’ ही था जिसने दक्षिण अफ्रीका से विजयी होकर लौटे तथा भारत के लिये उस समय तक अनजान महात्मा गाँधीकी महत्ता को समझा और चम्पारण सत्यग्रह  की नियमित रिपोर्टिंग कर राष्ट्र को गाँधी जी जैसे व्यक्तित्व से परिचित कराया। चौरी-चौरा तथा काकोरी काण्ड के दौरान भी विद्यार्थी जी ‘प्रताप’ के माध्यम से प्रतिनिधियों के बारे में नियमित लिखते रहे। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित सुप्रसिद्ध देशभक्ति कविता पुष्प की अभिलाषा प्रताप अखबार में ही मई १९२२ में प्रकाशित हुई। बालकृष्ण शर्मा नवीनसोहन लाल द्विवेदी, सनेहीजी, प्रताप नारायण मिश्र इत्यादि ने प्रताप के माध्यम से अपनी देशभक्ति को मुखर आवाज दी।
वस्तुत: प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ ऐसी थी कि जिसमें छिपकर रहा जा सकता था तथा फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। बनारस षडयंत्र से भागे सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य प्रताप अखबार में उपसम्पादक थे। बाद में भट्टाचार्य और प्रताप अखबार से ही जुड़े पं0 राम दुलारे त्रिपाठी को काकोरी काण्ड में सजा मिली। भगत सिंह ने तो ‘प्रताप‘ अखबार में बलवन्त सिंह के छद्म नाम से लगभग ढाई वर्ष तक कार्य किया। सर्वप्रथम दरियागंज, दिल्ली में हुये दंगे का समाचार एकत्र करने के लिए भगत सिंह ने दिल्ली की यात्रा की और लौटकर ‘प्रताप’ के लिए सचिन दा के सहयोग से दो कालम का समाचार तैयार किया। चन्द्रशेखर आजाद से भगत सिंह की मुलाकात विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में करायी थी, फिर तो शिव वर्मा सहित तमाम क्रान्तिकारी जुड़ते गये। यह विद्यार्थी जी ही थे कि जेल में भेंट करके क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा छिपाकर लाये तथा उसे ‘प्रताप‘ प्रेस के माध्यम से प्रकाशित करवाया। जरूरत पड़ने पर विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की माँ की मदद की और रोशन सिंह की कन्या का कन्यादान भी किया। यही नहीं अशफाकउल्ला खान की कब्र भी विद्यार्थी जी ने ही बनवाई।
विद्यार्थी जी का ‘प्रताप‘ तमाम महापुरूषों को भी आकृष्ट करता था। १९१६ में लखनऊ कांग्रेस के बाद महात्मा गाँधी और लोकमान्य तिलक इक्के पर बैठकर प्रताप प्रेस आये एवं वहाँ दो दिन रहे।
दैनिक प्रताप समाचार पत्र

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

जायसी कृति "कहरानामा" और "मसलानामा" जिसकी पाण्डुलिप तिलोई के सतनामी संत दूलनदास के पुत्र और जायस के पूर्व मंत्री के पुश्तैनी विरासत थी


मलिक मुहम्मद जायसी (१४७७-१५४२) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे
कहरानामा का रचना काल 947 हिजरी बताया गया है। यह काव्य ग्रंथ कहरवा या कहार गीत उत्तर प्रदेश की एक लोक- गीत पर आधारित में कवि ने कहरानाम के द्वारा संसार से डोली जाने की बात की है।
इनके अतिरिक्त 'महरी बाईसी' तथा 'मसलानामा' भी आपकी ही रचनाएँ मानी जाती हैं परन्तु जायसी की प्रसिद्धि का आधार तो 'पद्मावत' महाकाव्य ही है। जायसी की अनेक रचनाये जो आज तक प्रकाशित नही हुई है उसी में से एक मसलानामा और कहरामा भी थी

अन्य कृतियाँ

जायसी की मुख्य कृतियों के अलावा इनकी अतिरिक्त 'मसदा', , 'मुकहरानामा' व 'मुखरानामा', 'मुहरानामा', या 'होलीनामा', 'खुर्वानामा', 'संकरानामा', 'चम्पावत', 'मटकावत', 'इतरावत', 'लखरावत', 'मखरावत' या 'सुखरावत' 'लहरावत', 'नैनावात', 'घनावत', 'परमार्थ जायसी' और 'पुसीनामा' रचनाएँ भी जायसी की बतायी जाती हैं। किन्तु इनके विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
अमर बहादुर सिंह अमरेश जिन्होंने रानाबेनी माधव और राज कलस जैसे महान रचनाये की है उन्हें स्थानीय लोगो से कुछ पाण्डुलिप प्राप्त हुई जिसको उन्होंने प्रकशित किया जायसी के ग्रन्थों में प्रथम पाण्डुलिप उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सरकार के श्रम व् सामुदायिक विकास उप मंत्री एवं जायस क्षेत्र के विधायक सैय्यद वसी नकवी साहब से प्राप्त हुई थी ।यह उनकी माता जी के पास सुरक्षित थी जो परिवार में परम्परागत चली आ रही "धाती" के रूप में थी । माता जी देहावसान जे बाद यह प्रति श्री नकवी साहब के हाथ लगी । जायसी के ग्रंथों की द्वितीय पांडुलिपि  लेखक अमर बहादुर सिंह अमरेश को सेमरौता जूनियर हाई स्कूल के रिटायर्ड प्रधानाध्यापक तिलोई निवासी सतनामी सम्प्रदाय के श्री  त्रिभुवन प्रसाद त्रिपाठी के पास से प्राप्त हुई। यह पांडुलिपि सतनामी संप्रदाय में चली आने वाली परंपरागत संपत्ति के रूप में थी। सतनामी सम्प्रदाय के गुरु जगजीवन साहब कोटवा बाराबंकी के शिष्य महात्मा दूलन दास के पुत्र श्री राम बक्स दास की प्रेरणा से यह लिखी गई थी इसे भी "मन दास" ने सन 1869 वि.  में लिखा था । बहुत समय तक यह सत्यनामी महात्माओं के पास घूमती रही बाद में यह प्रति पंडित त्रिभुवन प्रसाद जी त्रिपाठी के गुरु महात्मा चंद्र भूषण जी के हाथ लगी यह उनके पास भी काफी समय तक रही तत्पश्चात गुरु जी की कृपा से लेखक अमरेश  को मुद्रण के लिए प्राप्त हो गई ।इस पांडुलिपि में भी प्रथम पांडुलिपि की भाँति "पद्मावती "अखरावती" "कहरानामा" और "मसलानामा" संग्रहित है । इस लिपि में कैथी मिश्रित हिंदी है जिन्हें कैथी भाषा का अच्छा ज्ञान ना हो उन्हें इसे पढ़ने में कठिनाई पड़ेगी ।अक्षर बहुत सुंदर और स्याही काली चमकदार है ।लाल स्याही का प्रयोगपृष्ठों को सुन्दर बनाने के लिए किया गया है।  पांडुलिपि का प्रथम पृष्ठ ना होने से प्रारंभिक शब्द नहीं मिलते हैं पद्मावती के अंत में इतिश्री पद्मावती कथा संपूर्ण शुभमस्तु शुभ इसके पश्चात नीचे लिखा है श्री मनदास इससे स्पष्ट है कि इस पांडुलिपि के लेखक श्री मन दास जी हैं श्री मान दास जी कौन थे कहां के रहने वाले थे इस संबंध में बहुत कम ज्ञात हो सका है किंतु उन्होंने किस प्रकार जायसी की पांडुलिपि प्राप्त किया । इस प्रतिलिपि की यह कहानी बहुत रोचक है सतनामी संप्रदाय के आदि गुरु श्री गुरु जगजीवन साहब कोटवा धाम के चार शिष्य थे । गोसाई दास, दूलन दास, खेम दास ,तथा देवीदास यही 4 गद्दियां सतनामी संप्रदाय के चार पावे कहे जाते हैं । महात्मा दूलन दास ने 90 वर्ष की आयु में दूसरा विवाह किया था। जिससे रामबक्स नामक पुत्र  की उत्पत्ति हुई श्री रामबक्स जी अच्छे कवि एवं जायसी ग्रंथों के संकलनकर्ता हैं उन्होंने जायसी के ग्रंथों की प्रतिलिप की उसी पांडुलिपियां प्रतिलिपि है जिसे श्री मानदास जी ने लिखी है इसका प्रमाण लेखक मानदास जी ने स्वयं पद्मावती के अंत में पांडुलिपि लिखने का कारण बताते हुए लिखा है
सतगुरु समरथ साहेब राम बकस प्रमान है ।
तिन लिखियो ग्रन्थ पद्मावती परमान है ।।
साहेब राम बकस कह दीना ।
लिख पद्मावत पूरन किना ।।
इससे प्रतीत होता है कि मन दास की पांडुलिपि  200 वर्षों से सतनामी संतों के साथ घूमती रही लगभग 100 वर्ष बाद यह महात्मा चंद्र भूषण दास को प्राप्त हुई है। वर्तमान पंडित त्रिभवन प्रसाद जी त्रिपाठी इन्हीं महात्मा चंद्र भूषण दास जी के शिष्य हैं और यह पांडुलिपि अब उनके पास सुरक्षित है ।
दोनों उद्धरणों से मेरे कथन की पुष्टि हो जाती है इस पांडुलिपि के लेखक श्री मानदास सतनामी संप्रदाय के थे । उन्होंने अपने गुरु रामबक्स साहब के आदेश से इसकी प्रतिलिपि थी यह पांडुलिपि सन 1879 की है। जिसकी सूचना लेखक श्री मानदास के उन्हीं दो पृष्ठों वाले आत्मनिवेदन में मिलती हैं
संवत अठारह सौ ओनहत्तर लिखा पद्मावत कथा ।
पाण्डुलिप जो प्राप्त हुई

तिरगें को नमन

झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत  भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम  ऐ शहीदों आप क...