संपर्क फ़ॉर्म

नाम

ईमेल *

संदेश *

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

तिरगें को नमन

झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत
 भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त
करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम 
ऐ शहीदों आप को शत-शत प्रणाम देश का रोशन किया दुनिया में नाम 
मुल्क का हर नागरिक ए मोहतरम आप की अजमत को करता है सलाम 
आप में कितना था साहस  आपने कितना था दम 
जब गुलामी से हुई नफरत तो देखो रख दिया तथा पलटकर आपने 
 खून की खेली है  होली सुबहो शाम टिक नहीं पाएं थे  दुश्मन सामने 
फांसी के तख्ते पर झूले कहके वंदे मातरम 
देश की आजादी का सपना संजोए सिर्फ मंजिल की रहे डग नापते 
 देशभक्ति का लिए जज्बा चले फर्क ना समझे हैं वो दिन रात में 
टूटने पाया नहीं हरगिज कभी मां का भरम
 हम को देखकर आप आजादी चले पर नहीं निकले हैं कुछ इंसान भले 
भूल बैठे आप की कुर्बानी को क्या  कहें   हम  लोगों   की  नादानी को
 भूल बैठे फर्ज को और अपना वह धरम
 क्या बताएं क्या है हालत देश की नफरतों कि बिछ रही है गोटियाँ
 इस कदर कानून की  उडी धज्जियां ना सलामत अब रही घर बेटियां 
 हर तरफ भ्रष्टाचार का धंधा गरम 
गर बचाना है हमें अपना वतन टूटने पाए ना हो इसका पतन ये दोस्तों
 करना होगा मिलकर सबको  जतन महके  फिर से यह प्यारा   चमन 
भेदभाव छोड़ कर सफ़ीर रक्खो  आगे कदम

                                                                                 रमजान अली सफ़ीर

सोमवार, 6 अगस्त 2018

जब तिलोई के काँग्रेस कार्यालय पर अंगरेजी हुकूमत ने ताला लगा कर गाँधी टोपी और तिरंगे पर लगाया प्रतिबंध तब आज़ादी के मतवाले देशभक्तों ने ताला तोड़ कर जलाई आज़ादी की मशाल

बुधवार, 15 अगस्त 2018 को पूरे भारत के लोगों द्वारा भारत के स्वतंत्रता दिवस को मनाया जायेगा। इस साल 2018 में भारत अपना 72वाँ स्वतंत्रता दिवस मनायेगा। 15 अगस्त 1947 को भारत में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। पर इस आजादी को पाने के लिए देश के अनेक वीरों ने अपनी जान गवाई है तहसील तिलोई भी आजादी के इस आन्दोलन का गवाह बना यहाँ के अनेक आजादी के मतवालों ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ़ बगावत का बिगुल फूंका अग्रेज़ी सरकार की अनेक यातनाओं को सहा और भारत माँ को आजादी दिलाई तहसील तिलोई के इन सभी आजादी के मतवालों को सादर नमन हमें आप पर गर्व है                      

                                    रामस्वरूप मिश्रा विशारद आत्मज  काशीदीन 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूज्य श्री विशारद जी का जन्म अप्रैल 1902 में सेमरौता में हुआ था। जिला परिषद में अध्यापक की नौकरी त्यागकर लगान बंदी आंदोलन में आए सन 1932- 33 में दो  बार 6 महीने की सख्त सजा पाई व्यक्तिगत सत्याग्रह में  सन 1940- 41 में 1 वर्ष की सजा 50 रुपए का जुर्माना लगाया गया। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में 14 माह तक नजर बंद रहे कई साल तक  जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष तथा प्रांतीय व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी व जिला बोर्ड के सदस्य रहे तिलोई और बछरावां सयुक्त विधानसभा से आप 1952 से 1957 तक  विधायक भी रहे  पंडित रामस्वरूप मिश्र विशारद जी की   राजनीतिक तथा साहित्य दोनों में पैठ रही कृष्णायन महाकाव्य की रचना आपने की थी 13मई  सन 1980 में स्वर्गवासी हुये।

                                 अहोरवा दीन यादव आत्मज अधीन यादव 

अहोरवा दीन निवासी पहाड़पुर थाना  मोहनगंज जिनका जन्म 1910 में तहसील तिलोई के पहाडपुर में हुआ था।
 15 वर्ष की अवस्था में कानपुर नौकरी हेतु गए वहां गणेश शंकर विद्यार्थी के माध्यम से डाक वितरण  में नियुक्त हो गए। 1 दिन डाक  लेकर जाते हुए एक कांग्रेस जुलूस में शामिल हो गये। पकड़े जाने और पिटाई से जख्मी हो गए छह माह की सजा और ₹15 का अर्थदंड हुआ जिसमें अपना नाम शिव नाथ पुत्र विश्वनाथ बदल दिया 3 महीने की सजा काटने पर छोड़ दिए गए । कांग्रेस के कार्य में सदैव संलग्न रहे।  सन 1940 41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में 20 मई 1941 को  38(5 ) DIR में 1 वर्ष की सजा और ₹50 का अर्थदंड हुआ 16 दिसंबर 1941 को जिलाधिकारी के आदेश पर छुटे  1942 में जिला लखीमपुर खीरी में रहे ।

                 गजाधर वर्मा आत्मा राम सहाय वर्मा निवासी अचकवापुर थाना मोहनगंज

गजाधर वर्मा जिनका जन्म 20 नवंबर 1918 को तहसील तिलोई के अचकवापुर ग्राम में हुआ था । आपका संपर्क स्थानीय कांग्रेस नेता श्री राम भरोसे श्रीवास्तव से था । मोहना से कक्षा 2 व शाहमऊ से कक्षा 4 पास कर जायस व तिलोई मिडिल स्कूल में शिक्षा पाई। यहां सेनानी विशंभर नाथ (कांटा) तथा सेनानी माता प्रसाद का प्रभाव पड़ा।  तिलोई कांग्रेस कार्यालय पर पुलिस ने कब्जा कर लिया था । गांधी टोपी लगाने और  तिरंगा लेकर चलने में जोखिम थी ।  गुरदयाल कुम्हार  और विपत मुराई  के सहयोग से वर्मा जी कांग्रेस  कार्यालय का ताला तोड़कर कब्जा कर लिया । खबर पाकर अंगेजी सरकार में हडकंप मच गया  । खबर पाकर पुलिस आई और मारपीट कर  तीनों को थाने ले गई वहां भी पिटाई हुई माफ़ी ना मांगने पर हवालात में बंद कर दिया गया। और अगले दिन तीनो लोगो को रायबरेली जेल भेज दिए गए । जहां छह छह माह की सजा हो गई जेल में कोल्हू और चक्की चलाने को मिली जेल सुपरिंटेंडेंट बनारसी दास ने इन पर बहुत अत्याचार किये  एक महीने बाद बस्ती जेल भेजे दिए गए वहां के जेलर की पिटाई करने पर छह माह की सजा और बड़ा दी गयी जेल से छूट कर आने पर शाहमऊ में एक बहुत बड़ी सभा की  जिसमें डा परमत्मादीन सिंह  उन्नाव और बाबू गोकुलराम वर्मा  कानपुर से भाग लेने आये  सन 1932 में लगान बन्दी में स्कूल छोड़करछ महीने की सजा काटी 1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में एक वर्ष और  और 50 रूपये के जुर्माने की सजा  पायी  । 50 रूपये जुर्माना न भरने के कारण 3 महीने के और सजा और भुगतनी पड़ी बस्ती जेल में सजा बढ़ जाने के कारण गोरखपुर भेजे गए और फांसीघर में  कई दिनों तक बंद रहे सुभाष  चंद्र बोस ने जिन दिनों सिंगापुर पर हमला किया था वर्मा जी छोड़ दिए गये ।


                                     रामदत्त वैद्य पुत्र कोहली प्रसाद ग्राम अहुरी थाना मोहनगंज

राम दत्त जी जिनका जन्म 1906 में हुआ था आप रहवा प्राइमरी पाठशाला के अध्यापक थे । रामेश्वर सिंह से प्रभावित होकर गांजा भांग की दुकानों पर धरना देने लगे उसी में गिरफ्तार हुए । सन 1932 में 3 माह सजा तथा ₹15 जुर्माना हुआ जेल में तलाशी व परेड का विरोध करने पर मार पड़ी 4 दांत टूट गए जेल में 2 जमादारो  पर पांच ₹5 रूपये का आर्थिक आर्थिक दंड लगाया गया  । और जिला अधिकारी ने उन्हें 4 माह की सजा दे दी जेलर ने इनके साथ क्रूर  व्यवहार किया इनका विवरण समाचार पत्र में प्रकाशित होने पर इंग्लैंड से मिस विलकिन्सन  मामले की जांच करने आई थी जेल अधिकारियों ने नहीं मिलने दिया दोषी  पाए जाने पर जेलर और सुपरिंटेंडेंट का स्थान्तरण  कर दिया गया व्यक्तिगत सत्याग्रह में 1 वर्ष की सजा तथा ₹500 का जुर्माना हुआ राम दत्त जी के खेतों को तालुक्केदारो ने  छीन लिए थे ।

                                शमशेर खान पूरे धना पांडे मजरे मोहना थाना मोहनगंज 

शमशेर खान  इनका जन्म 1899 में हुआ था आजादी के आन्दोलन में भाग लेने के कारण 1931 में 1 वर्ष की कड़ी सजा 15 दिन की कालकोठरी की सजा भी जेल में दी गई आजादी के आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया

रविवार, 5 अगस्त 2018

तिरंगे की शान में रायबरेली में हुआ था देश का पहला बलिदान

तिरंगे झंडे के सम्मान के लिए विश्व की वीरता के इतिहास में एक स्मरणीय बलिदान हुआ ।एक अनपढ़ ग्रामीण वृद्धा के आत्म गौरव की भावना ने अंग्रेजी हुकूमत के फौलादी पंजों का पानी उतार दिया यह था । यह था रायबरेली के सलोन तहसील के करहिया बाजार का गोलीकांड । घटना की तिथि 20 मार्च 1921 मुंशीगंज हत्याकांड से ठीक कुछ दिन बाद का था ।करहिया रियासत का जागीदार बहुत जालिम था जनता का शोषण करने की कला में तो उस समय के सभी जागीदार पारंगत थे । और उसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे । किंतु यह जागीदार जुल्मों के नए-नए और नग्न रूप खोजने में आश्चर्य था । इतिहास का सबसे बड़ा बधिक नादिरशाह की बेरहमी उसके मुकाबले हेच थी ।
20 मार्च 1921 को करहिया बाजार में एक किसान सभा का आयोजन था । क्षेत्रीय किसानों को संगठित करने और रियासत के जागीदार के खिलाफ खुली बगावत के  उद्देश्य से सभा को कुछ किसान नेता संबोधित करने आए थे । झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह इस सभा के मुख्य आयोजक और प्रमुख वक्ता थे।
झुंनकू सिंह इसी रियासत के एक साधारण किसान थे। सैकड़ों किसानों को लेकर झुंनकू सिंह ने अपनी आवाज उस दिन अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए गढी को घेर लिया । सलोन थाने की पुलिस रियायत के जागीरदार की मदद को पहुंची उसने झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया । किंतु उन्हें वह वहां से ले ना जा सकी । भीड़ ने अपने नेताओं को पुलिस से छीन लिया । इस पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 2 किसान शहीद हुए और 5 घायल हो गए । लेकिन भीड़ से टस से मस ना हुई । थानेदार घबराकर सदल बल घटनास्थल से रफूचक्कर हो गया ।आधी रात से लेकर सुबह तक हजारों किसान बैठे रहे और भाषण होते रहे। पुलिस छिपी रही किंतु उसने घटना की सूचना सदर पहुंचा दी थी ।
शान न इसकी जाने पाए चाहे जान भले ही जाए
सुबह होते-होते जिला कलेक्टर और पुलिस कप्तान अतिरिक्त टुकड़ी लेकर मैदान में डटे । बड़े अधिकारियों को अमले के साथ देखकर लोगों का उत्साह और बढ़ा । सारा आकाश अत्याचार विरोधी नारों से गूंज उठा तिरंगे को हाथ में लेकर झुंनकू सिंह ने वंदे मातरम का जोरदार नारा लगाया ।
हजारों किसानों के स्वर से गूंजते नारों से अँग्रेजी हुक्मरान झेंप गए इस को मिटाने के लिए थानेदार झुंनकू सिंह के हाथ से तिरंगा छीनने के लिए झपट पड़े । तिरंगे झंडे के अपमान का खतरा देख कर वह झण्डा थामे थामे थानेदार से लिपट गया हुआ था । थानेदार ने दबोच कर जमीन पर पटक दिया लेकिन साथ ही साथ वह भी चारों खाने चित होकर कर गिर गया ।इस हंगामे में झंडा एक तरफ को खिसका तो उसे उठाने के लिए पुलिस वाले लपके मगर उनके लपकने से  पहले सभा में भाग लेने आई करहिया बाजार सलोन से आयी वृद्धा भगतिन झण्डे से लिपट गई । और तिरंगें की शान बरकरार रखी । इस बीच क्या हुआ खिसियाया हुआ  थानेदार उठा और उठते ही उसने पिस्तौल दाग दी गोली झुंनकू सिंह के छाती में लगी  और वह शहीद हो गए। तिरँगा झंडा अभी तक मां भगतन के हाथों में था । थानेदार और सिपाहियों की शक्ति भी जब झंडा छीनने में असफल रही तो खुद थानेदार की गोली मां भगतन के सीने में धंस गई । बाद में माँ भगतिन का शव जब चिता पर रखा गया तब भी वही तिरँगा झण्डा उनसे लिपटा हुआ था । बाद में अँग्रेजी सरकार द्वारा मां भगतन का उनके बलिदान को कम करने की दृष्टि से सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि करहिया बाजार में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति मारा गया और 7 घायल हुए उनको गिरफ्तार कर लिया गया । जिसमें से जेल में जाने से झुंझनू सिंह के घाव सड़ जाने से जेल में मृत्यु हो गई और बृजपाल सिंह को 4 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।

तिरंगे की शान में रायबरेली में हुआ था देश का पहला बलिदान

तिरंगे झंडे के सम्मान के लिए विश्व की वीरता के इतिहास में एक स्मरणीय बलिदान हुआ ।एक अनपढ़ ग्रामीण वृद्धा के आत्म गौरव की भावना ने अंग्रेजी हुकूमत के फौलादी पंजों का पानी उतार दिया यह था । यह था रायबरेली के सलोन तहसील के करहिया बाजार का गोलीकांड । घटना की तिथि 20 मार्च 1921 मुंशीगंज हत्याकांड से ठीक कुछ दिन बाद का था ।करहिया रियासत का जागीदार बहुत जालिम था जनता का शोषण करने की कला में तो उस समय के सभी जागीदार पारंगत थे । और उसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे । किंतु यह जागीदार जुल्मों के नए-नए और नग्न रूप खोजने में आश्चर्य था । इतिहास का सबसे बड़ा बधिक नादिरशाह की बेरहमी उसके मुकाबले हेच थी ।
20 मार्च 1921 को करहिया बाजार में एक किसान सभा का आयोजन था । क्षेत्रीय किसानों को संगठित करने और रियासत के जागीदार के खिलाफ खुली बगावत के  उद्देश्य से सभा को कुछ किसान नेता संबोधित करने आए थे । झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह इस सभा के मुख्य आयोजक और प्रमुख वक्ता थे।
झुंनकू सिंह इसी रियासत के एक साधारण किसान थे। सैकड़ों किसानों को लेकर झुंनकू सिंह ने अपनी आवाज उस दिन अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए गढी को घेर लिया । सलोन थाने की पुलिस रियायत के जागीरदार की मदद को पहुंची उसने झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया । किंतु उन्हें वह वहां से ले ना जा सकी । भीड़ ने अपने नेताओं को पुलिस से छीन लिया । इस पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 2 किसान शहीद हुए और 5 घायल हो गए । लेकिन भीड़ से टस से मस ना हुई । थानेदार घबराकर सदल बल घटनास्थल से रफूचक्कर हो गया ।आधी रात से लेकर सुबह तक हजारों किसान बैठे रहे और भाषण होते रहे। पुलिस छिपी रही किंतु उसने घटना की सूचना सदर पहुंचा दी थी ।
शान न इसकी जाने पाए चाहे जान भले ही जाए
सुबह होते-होते जिला कलेक्टर और पुलिस कप्तान अतिरिक्त टुकड़ी लेकर मैदान में डटे । बड़े अधिकारियों को अमले के साथ देखकर लोगों का उत्साह और बढ़ा । सारा आकाश अत्याचार विरोधी नारों से गूंज उठा तिरंगे को हाथ में लेकर झुंनकू सिंह ने वंदे मातरम का जोरदार नारा लगाया ।
हजारों किसानों के स्वर से गूंजते नारों से अँग्रेजी हुक्मरान झेंप गए इस को मिटाने के लिए थानेदार झुंनकू सिंह के हाथ से तिरंगा छीनने के लिए झपट पड़े । तिरंगे झंडे के अपमान का खतरा देख कर वह झण्डा थामे थामे थानेदार से लिपट गया हुआ था । थानेदार ने दबोच कर जमीन पर पटक दिया लेकिन साथ ही साथ वह भी चारों खाने चित होकर कर गिर गया ।इस हंगामे में झंडा एक तरफ को खिसका तो उसे उठाने के लिए पुलिस वाले लपके मगर उनके लपकने से  पहले सभा में भाग लेने आई करहिया बाजार सलोन से आयी वृद्धा भगतिन झण्डे से लिपट गई । और तिरंगें की शान बरकरार रखी । इस बीच क्या हुआ खिसियाया हुआ  थानेदार उठा और उठते ही उसने पिस्तौल दाग दी गोली झुंनकू सिंह के छाती में लगी  और वह शहीद हो गए। तिरँगा झंडा अभी तक मां भगतन के हाथों में था । थानेदार और सिपाहियों की शक्ति भी जब झंडा छीनने में असफल रही तो खुद थानेदार की गोली मां भगतन के सीने में धंस गई । बाद में माँ भगतिन का शव जब चिता पर रखा गया तब भी वही तिरँगा झण्डा उनसे लिपटा हुआ था । बाद में अँग्रेजी सरकार द्वारा मां भगतन का उनके बलिदान को कम करने की दृष्टि से सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि करहिया बाजार में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति मारा गया और 7 घायल हुए उनको गिरफ्तार कर लिया गया । जिसमें से जेल में जाने से झुंझनू सिंह के घाव सड़ जाने से जेल में मृत्यु हो गई और बृजपाल सिंह को 4 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।

तिरगें को नमन

झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत  भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम  ऐ शहीदों आप क...