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शनिवार, 28 अप्रैल 2018

देश के हालात पर कविता

देश के हालात पर कविता 



देश के देख कर दुर्गति बरबादी आये याद सुभाष और गाँधी
छुट्टा  घूम  रहे  अपराधी  बने  है  नेता  पहने  है खादी
कोटेदार  बेच  रहे  है  रासन  भ्रष्ट हुये शासन प्रशास न
भ्रष्टाचार और अत्याचार का फल फूल रहा है व्यभिचार का
पैसा  अब  भगवान  बना  है पैसा बिना हर काम रुका है
काम   नही   होते   सरकारी   यैसी  फैली  है  बीमारी
बिकतान्याय और बिकतीअस्मत फूटगयी है देशकी किस्मत
हाथ  पसारे  है  महगाई  महंगी   हुई है   आज   पढाई
महंगा  इलाज और महंगी दवाई झूठी बनी सच और भलाई

कहीं ना कोई सुनने वाला रूठ गया है ऊपर वाला
बढ़ती जाये बेरोजगारी बनी समस्या है बेकारी
 
लूट  व्  हिंसा  की  वारदाते  चोरी  फिरौती  की  सौगाते
लुट  रहे  बैंक  खुल  रहे  ताले  गहरी नीदं सोये रखवाले
नेता   देते   झूठा   भासण  गोदामों  में  सड़ता  रासन
बैठे  रोये  बाप और  माई  देता  नही  है  लड़का कमाई
चूल्हा  अलग  बहू घर  आयी हर घर की बस यही लड़ाई
निर्बल  निर्धन अभिशाप बना है देश में इतना पाप बड़ा है
लूट   रहे   है  पीर  फ़क़ीर  रहे  नही  रसखान  कबीर
भाई  से  भाई   लड़ते  है  रिश्ते  तार  तार  करते  है
मुल्ला  पंडित   की  अगुवाई  हिन्दू मुस्लिम करें लड़ाई
राजनिति  की  महिमा  न्यारी  होती इसकी चाल दुधारी
आओं सब मिल अलख जगाये प्रेम मोहब्बत को फैलाये
नफ़रत की  दिवार  ढहाये देश  विकास की ओर ले जाये
मिलकर हम सब करें तरक्की अगवाई फिर करे विश्व की
आवाहनं कर  रहे   सफ़ीर बदलो भारत की  तस्बीर
                       रमजान अली सफ़ीर




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