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सोमवार, 7 मई 2018

आजादी के पहले से लेकर अब तक नही बदले रायबरेली के किसानो के हालात


आजादी के पहले रायबरेली के किसानो को अग्रेंजो ने और यहाँ के
तालुकेदारों ने  जम कर लूटा और उन पर जुर्म किये उनसे अनेक प्रकार के टैक्स और लगान वसूला जाता रहा है जो की अंग्रेज अपने शासन के खर्चो और तालुकेदार अपनी विलासिला पर खर्च करते थे इन सब जुर्मो से रायबरेली का किसान परेशान होकर अंगेजी शासन के खिलाफ़ उग्र हो गये और आजादी की लड़ाई में  बड़ा आन्दोलन खड़ा कर चुके थे जिसमे रायबरेली के समीप सई नदी के तट पर हुए किसान गोली कांड को जलियांवाला बाग हत्या कांड के बाद आजादी की लड़ाई के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा हत्याकांड माना जाता है रायबरेली के इस आन्दोलन के बारे में रायबरेली जिले के साहित्यकार अमर बहादुर सिंह अमरेश ने अपनी लेखनी से इस का वर्णन इस प्रकार किया है उन्होंने लिखा  रायबरेली के किसानों की भावनाओं का परिचय कुछ तथाकथित किसान नेताओं को मिल चुका था। वे इसे संगठनात्मक रूप देने के लिए आगे बढ़े। ‘अवध किसान सभा’ नामक एक संस्था की भी स्थापना की। इस किसान सभा की नियमावली बनायी गई थी। अवध के किसान-आंदोलन के साथ भारतीय इतिहासकारों ने न्याय नहीं किया है। यदि पं. जवाहरलाल नेहरू इसका उल्लेख ‘मेरी कहानी’ में न करते, तो आज इस आंदोलन का कोई नाम भी न लेता। सन १८५७ के प्रथम स्वाधीनता-संग्राम में अवध के किसानों ने खुलकर फिरंगी सेना का सामना किया था। बाद में सरकार और किसानों के मध्य तालुकेदारों की कड़ी थी। दोनों मिलकर किसानों को दबाने लगे। तालुकेदारों की नीति का पालन उनके अहलकार-मैनेजर, मुख्तार, जिलेदार तथा सिपाही करते थे। वे लगान वसूल करते थे। तालुकेदार अपनी विलासिता तथा उपभोग की वस्तुएँ खरीदने के लिए भी चंदा लगाया करते थे। जैसे हाथी खरीदने के लिए- ‘हाथीवान टैक्स लगता था।

यह थी, अवध और रायबरेली जिले कि किसानों की दुर्दशा। जिले के वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता मुंशी सत्यनारायण श्रीवास्तव ने लिखा है- ‘‘बेदखली की तलवार यहाँ के किसानों की गर्दन पर हर वक्त लटकती रहती थी। अवध का किसान तालुकेदारों के जुल्मों से आजिज आ गया था। रायबरेली जिले में जगह-जगह किसानों ने तालुकेदारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। बदमाशों को मौका मिला और किसानों को गुमराह कराकर फुरसतगंज, करहिया बाजार आदि स्थानों पर लूट करा दी।’’

सन १९२०-२१ के ऐतिहासिक किसान-आंदोलन का उल्लेख करते हुए पं. अंजनीकुमार ने लिखा है- ‘‘इस आंदोलन का आरंभ क्यों और कैसे हुआ, इसको बताने के लिए यह आवश्यक है कि पहले यह बता दिया जाए कि सन १९२० व उसके पहले यहाँ के किसानों की स्थिति व दशा कैसी थी। तालुकेदारी प्रथा थी। तालुकेदार अपने को राजा कहते थे।’’
आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी नही बदले है किसानो के हालात पहले अंग्रेज और तालुकेदार की जगह पर व्यपारी और सरकारी अधिकारियो ने ले ली है जिस तरह सेअंग्रेजो के  जुल्मो से तब का किसान परेशान था वर्तमान में अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता की वजह से किसान परेशान है 

किसानो के लिए बनाई गयी मंडियों में आज निम्न परेशानिया है जिससे किसान रोज रु बरु होता है
1. व्यापारियों द्वारा किसानों से गेहूं खरीदते समय एमएसपी से ₹200 कम भुगतान किया जा रहा है।
2. किसानों को प्रपत्र 6R न देकर कच्चा पर्चा दिया जा रहा है, जिससे राजस्व की चोरी भी हो रही है।
3. किसानों से गेहूं क्रय करते समय 200 ग्राम की बोरी का वजन 500 ग्राम तथा 700 ग्राम की बोरी का वजन 1500 ग्राम के हिसाब से तय करके कटौती की जा रही है।
4. इसी तरह किसानों से पल्लेदारी की तय राशि से दोगुना भुगतान लिया जा रहा है।
5. सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूँ की बिक्री करने के लिए किसानों को 15 दिन बाद तक का समय दिया जा रहा है।
6. सरकारी क्रय केंद्रों पर दैनिक क्षमता से 3 से 4 गुना अधिक खरीददारी दिखाई जा रही है, केंद्र के अधिकारियों तथा बिचौलियों की मिलीभगत साफ जाहिर होती है।
7. मंडी के नीलामी चबूतरों पर व्यापारियों का अनधिकृत कब्जा है, जिस कारण किसान अपने उत्पाद खुले में रखने के लिए बाध्य हैं। 

जबकि सरकारे आती है सरकारे चली जाती हैसारी सरकारे किसानो का हमदर्द होने का दावाकरती है कुछ दिन पहले जायस जनपद अमेठी जहाँ पर किसान अब्दुल सत्तार पुत्र मोहम्मद उमर पूरे धींगई मजरे खैरहना थाना फुरसत गंज जनपद अमेठी अपनी गेंहू की फसल बेचने आया था । परन्तु तीन दिनों से उसके फसल की खरीद मंडी के द्वारा नही की गई जिसके कारण किसान तीन दिनों से मंडी में ही रुका रहा ।और बीती रात किसान की मौत हो गयी । एक तरफ सरकार गेहूं ख़रीद के आंकड़े जारी कर अपनी पीठ थप थपा रही ही दूसरी तरफ जमीन पर गेंहू खरीद में लगे कर्मचारी अपनी मनमानी से बाज नही आ रहे ।किसानों को कभी बोरा न होने का रोना रोते कभी लेबर न होने का किसानों को महीनों भर बाद का टोकन दे देते है ।
पिछले महीने की 24 तारीख को इसी मंडी में व्याप्त भरस्टाचार को लेकर जय किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश के संयोजक संजय कुमार के द्वारा MSP सत्याग्रह किया गया था जिसमे देश भर में किसानों का आंदोलन चला रहे प्रो योगेंद्र यादव भी शामिल हुए । जिसमें किसानों के लिए बने विश्राम गृह पर मंडी समिति के अध्यक्ष द्वारा दसको से जमाये कब्जे को खाली कराने की मांग प्रमुखता से की गई थी ।

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