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गुरुवार, 16 अगस्त 2018
तिरगें को नमन
सोमवार, 6 अगस्त 2018
जब तिलोई के काँग्रेस कार्यालय पर अंगरेजी हुकूमत ने ताला लगा कर गाँधी टोपी और तिरंगे पर लगाया प्रतिबंध तब आज़ादी के मतवाले देशभक्तों ने ताला तोड़ कर जलाई आज़ादी की मशाल
रामस्वरूप मिश्रा विशारद आत्मज काशीदीन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूज्य श्री विशारद जी का जन्म अप्रैल 1902 में सेमरौता में हुआ था। जिला परिषद में अध्यापक की नौकरी त्यागकर लगान बंदी आंदोलन में आए सन 1932- 33 में दो बार 6 महीने की सख्त सजा पाई व्यक्तिगत सत्याग्रह में सन 1940- 41 में 1 वर्ष की सजा 50 रुपए का जुर्माना लगाया गया। भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में 14 माह तक नजर बंद रहे कई साल तक जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष तथा प्रांतीय व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी व जिला बोर्ड के सदस्य रहे तिलोई और बछरावां सयुक्त विधानसभा से आप 1952 से 1957 तक विधायक भी रहे पंडित रामस्वरूप मिश्र विशारद जी की राजनीतिक तथा साहित्य दोनों में पैठ रही कृष्णायन महाकाव्य की रचना आपने की थी 13मई सन 1980 में स्वर्गवासी हुये।अहोरवा दीन यादव आत्मज अधीन यादव
अहोरवा दीन निवासी पहाड़पुर थाना मोहनगंज जिनका जन्म 1910 में तहसील तिलोई के पहाडपुर में हुआ था।गजाधर वर्मा आत्मा राम सहाय वर्मा निवासी अचकवापुर थाना मोहनगंज
रामदत्त वैद्य पुत्र कोहली प्रसाद ग्राम अहुरी थाना मोहनगंज
शमशेर खान पूरे धना पांडे मजरे मोहना थाना मोहनगंज
रविवार, 5 अगस्त 2018
तिरंगे की शान में रायबरेली में हुआ था देश का पहला बलिदान
तिरंगे झंडे के सम्मान के लिए विश्व की वीरता के इतिहास में एक स्मरणीय बलिदान हुआ ।एक अनपढ़ ग्रामीण वृद्धा के आत्म गौरव की भावना ने अंग्रेजी हुकूमत के फौलादी पंजों का पानी उतार दिया यह था । यह था रायबरेली के सलोन तहसील के करहिया बाजार का गोलीकांड । घटना की तिथि 20 मार्च 1921 मुंशीगंज हत्याकांड से ठीक कुछ दिन बाद का था ।करहिया रियासत का जागीदार बहुत जालिम था जनता का शोषण करने की कला में तो उस समय के सभी जागीदार पारंगत थे । और उसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे । किंतु यह जागीदार जुल्मों के नए-नए और नग्न रूप खोजने में आश्चर्य था । इतिहास का सबसे बड़ा बधिक नादिरशाह की बेरहमी उसके मुकाबले हेच थी ।
20 मार्च 1921 को करहिया बाजार में एक किसान सभा का आयोजन था । क्षेत्रीय किसानों को संगठित करने और रियासत के जागीदार के खिलाफ खुली बगावत के उद्देश्य से सभा को कुछ किसान नेता संबोधित करने आए थे । झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह इस सभा के मुख्य आयोजक और प्रमुख वक्ता थे।
झुंनकू सिंह इसी रियासत के एक साधारण किसान थे। सैकड़ों किसानों को लेकर झुंनकू सिंह ने अपनी आवाज उस दिन अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए गढी को घेर लिया । सलोन थाने की पुलिस रियायत के जागीरदार की मदद को पहुंची उसने झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया । किंतु उन्हें वह वहां से ले ना जा सकी । भीड़ ने अपने नेताओं को पुलिस से छीन लिया । इस पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 2 किसान शहीद हुए और 5 घायल हो गए । लेकिन भीड़ से टस से मस ना हुई । थानेदार घबराकर सदल बल घटनास्थल से रफूचक्कर हो गया ।आधी रात से लेकर सुबह तक हजारों किसान बैठे रहे और भाषण होते रहे। पुलिस छिपी रही किंतु उसने घटना की सूचना सदर पहुंचा दी थी ।
शान न इसकी जाने पाए चाहे जान भले ही जाए
सुबह होते-होते जिला कलेक्टर और पुलिस कप्तान अतिरिक्त टुकड़ी लेकर मैदान में डटे । बड़े अधिकारियों को अमले के साथ देखकर लोगों का उत्साह और बढ़ा । सारा आकाश अत्याचार विरोधी नारों से गूंज उठा तिरंगे को हाथ में लेकर झुंनकू सिंह ने वंदे मातरम का जोरदार नारा लगाया ।
हजारों किसानों के स्वर से गूंजते नारों से अँग्रेजी हुक्मरान झेंप गए इस को मिटाने के लिए थानेदार झुंनकू सिंह के हाथ से तिरंगा छीनने के लिए झपट पड़े । तिरंगे झंडे के अपमान का खतरा देख कर वह झण्डा थामे थामे थानेदार से लिपट गया हुआ था । थानेदार ने दबोच कर जमीन पर पटक दिया लेकिन साथ ही साथ वह भी चारों खाने चित होकर कर गिर गया ।इस हंगामे में झंडा एक तरफ को खिसका तो उसे उठाने के लिए पुलिस वाले लपके मगर उनके लपकने से पहले सभा में भाग लेने आई करहिया बाजार सलोन से आयी वृद्धा भगतिन झण्डे से लिपट गई । और तिरंगें की शान बरकरार रखी । इस बीच क्या हुआ खिसियाया हुआ थानेदार उठा और उठते ही उसने पिस्तौल दाग दी गोली झुंनकू सिंह के छाती में लगी और वह शहीद हो गए। तिरँगा झंडा अभी तक मां भगतन के हाथों में था । थानेदार और सिपाहियों की शक्ति भी जब झंडा छीनने में असफल रही तो खुद थानेदार की गोली मां भगतन के सीने में धंस गई । बाद में माँ भगतिन का शव जब चिता पर रखा गया तब भी वही तिरँगा झण्डा उनसे लिपटा हुआ था । बाद में अँग्रेजी सरकार द्वारा मां भगतन का उनके बलिदान को कम करने की दृष्टि से सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि करहिया बाजार में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति मारा गया और 7 घायल हुए उनको गिरफ्तार कर लिया गया । जिसमें से जेल में जाने से झुंझनू सिंह के घाव सड़ जाने से जेल में मृत्यु हो गई और बृजपाल सिंह को 4 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।
तिरंगे की शान में रायबरेली में हुआ था देश का पहला बलिदान
तिरंगे झंडे के सम्मान के लिए विश्व की वीरता के इतिहास में एक स्मरणीय बलिदान हुआ ।एक अनपढ़ ग्रामीण वृद्धा के आत्म गौरव की भावना ने अंग्रेजी हुकूमत के फौलादी पंजों का पानी उतार दिया यह था । यह था रायबरेली के सलोन तहसील के करहिया बाजार का गोलीकांड । घटना की तिथि 20 मार्च 1921 मुंशीगंज हत्याकांड से ठीक कुछ दिन बाद का था ।करहिया रियासत का जागीदार बहुत जालिम था जनता का शोषण करने की कला में तो उस समय के सभी जागीदार पारंगत थे । और उसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे । किंतु यह जागीदार जुल्मों के नए-नए और नग्न रूप खोजने में आश्चर्य था । इतिहास का सबसे बड़ा बधिक नादिरशाह की बेरहमी उसके मुकाबले हेच थी ।
20 मार्च 1921 को करहिया बाजार में एक किसान सभा का आयोजन था । क्षेत्रीय किसानों को संगठित करने और रियासत के जागीदार के खिलाफ खुली बगावत के उद्देश्य से सभा को कुछ किसान नेता संबोधित करने आए थे । झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह इस सभा के मुख्य आयोजक और प्रमुख वक्ता थे।
झुंनकू सिंह इसी रियासत के एक साधारण किसान थे। सैकड़ों किसानों को लेकर झुंनकू सिंह ने अपनी आवाज उस दिन अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए गढी को घेर लिया । सलोन थाने की पुलिस रियायत के जागीरदार की मदद को पहुंची उसने झुंनकू सिंह और बृजपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया । किंतु उन्हें वह वहां से ले ना जा सकी । भीड़ ने अपने नेताओं को पुलिस से छीन लिया । इस पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 2 किसान शहीद हुए और 5 घायल हो गए । लेकिन भीड़ से टस से मस ना हुई । थानेदार घबराकर सदल बल घटनास्थल से रफूचक्कर हो गया ।आधी रात से लेकर सुबह तक हजारों किसान बैठे रहे और भाषण होते रहे। पुलिस छिपी रही किंतु उसने घटना की सूचना सदर पहुंचा दी थी ।
शान न इसकी जाने पाए चाहे जान भले ही जाए
सुबह होते-होते जिला कलेक्टर और पुलिस कप्तान अतिरिक्त टुकड़ी लेकर मैदान में डटे । बड़े अधिकारियों को अमले के साथ देखकर लोगों का उत्साह और बढ़ा । सारा आकाश अत्याचार विरोधी नारों से गूंज उठा तिरंगे को हाथ में लेकर झुंनकू सिंह ने वंदे मातरम का जोरदार नारा लगाया ।
हजारों किसानों के स्वर से गूंजते नारों से अँग्रेजी हुक्मरान झेंप गए इस को मिटाने के लिए थानेदार झुंनकू सिंह के हाथ से तिरंगा छीनने के लिए झपट पड़े । तिरंगे झंडे के अपमान का खतरा देख कर वह झण्डा थामे थामे थानेदार से लिपट गया हुआ था । थानेदार ने दबोच कर जमीन पर पटक दिया लेकिन साथ ही साथ वह भी चारों खाने चित होकर कर गिर गया ।इस हंगामे में झंडा एक तरफ को खिसका तो उसे उठाने के लिए पुलिस वाले लपके मगर उनके लपकने से पहले सभा में भाग लेने आई करहिया बाजार सलोन से आयी वृद्धा भगतिन झण्डे से लिपट गई । और तिरंगें की शान बरकरार रखी । इस बीच क्या हुआ खिसियाया हुआ थानेदार उठा और उठते ही उसने पिस्तौल दाग दी गोली झुंनकू सिंह के छाती में लगी और वह शहीद हो गए। तिरँगा झंडा अभी तक मां भगतन के हाथों में था । थानेदार और सिपाहियों की शक्ति भी जब झंडा छीनने में असफल रही तो खुद थानेदार की गोली मां भगतन के सीने में धंस गई । बाद में माँ भगतिन का शव जब चिता पर रखा गया तब भी वही तिरँगा झण्डा उनसे लिपटा हुआ था । बाद में अँग्रेजी सरकार द्वारा मां भगतन का उनके बलिदान को कम करने की दृष्टि से सरकारी रिपोर्ट में कहा गया कि करहिया बाजार में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति मारा गया और 7 घायल हुए उनको गिरफ्तार कर लिया गया । जिसमें से जेल में जाने से झुंझनू सिंह के घाव सड़ जाने से जेल में मृत्यु हो गई और बृजपाल सिंह को 4 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया।
तिरगें को नमन
झूमे धरती झूमे अंबर झूमता है दिग - दिगंत भूली बिसरी यादें लेके आया है 15 अगस्त करू तिरंगे को नमन सर झुका कर आंख नम ऐ शहीदों आप क...

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'श्रीरामचरितमानस' के अद्भुत टीकाकार थे शाहमऊ विकास खण्ड तिलोई जनपद अमेठी के महाराज कुमार बाबू रणबहादुर सिंह भारतीय राजवं...
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मलिक मुहम्मद जायसी (१४७७-१५४२) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार ...
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पहली बार उसे रंडी तब बोला गया जब वह करीब 8 साल की थी. घर में किसी ने गाली दी थी. शायद बड़ी या छोटी दादी में से कोई थी. घर का माहौल ऐसा था कि ...