माँ अष्ट्रभुजा देवी शक्ति पीठ शाहमऊ विकास खण्ड तिलोई अमेठी
शाहमऊ विकास खण्ड तिलोई जनपद अमेठी में स्थित एक सक्ति पीठ है जिसका इतिहास हजारो साल पुराना है
इस मंदिर में स्थापित माँ की विशाल का्य प्रतिमा जो मंदिर को सुशोभित कर रही है
मा अष्टभुजा देवी के श्री चरणों में ये कृत सादर समर्पित हैउन्ही के आदेश और आशीर्वाद से इस की रचना संभव हो सकी है जायस जनपद अमेठी का एकएतिहासिक नगर है जो की पहले रायबरेली जनपद का हिस्सा था जनपद अमेठी का निर्माण होने पर यह अमेठी का हिस्सा बना
जायस की पावन धरती पर गुरु गोरखनाथ का जन्म हुआ था जिसका जिक्र अनेक पुस्तको में मिलता है और आज भी जायस में कुछ अवशेष पाए जाते है जिसमे बनी बारादरी प्रमुख है
पद्मावत जैसा महाकाव्य लिखने वाले मलिक मोहम्मद जायसी ने का जन्म इसी धरती पर हुआ था जिन्होंने अवधी भाषा में एक महाकाव्य की रचना की जिसमे उन्होंने चित्तोड़ गढ़ के राजा की प्रेम कहानी का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है इसी महाकाव्य पर संजय लीला भन्साली ने फिल्म का निर्माण किया जो की काफी विवादों में रही
पदमावत महाकाव्य की पांडुलिप जिसे आज भी सुरक्षित रखा गया है
जायसी की रचना कन्हावत के अनुसार जायस नगर का प्राचीन नाम उद्यान नगर था और यहाँ पर हजारो ऋषि मुनि रहा करते थे
जायसी ने अपनी रचना कन्हावत में जायस नगर का विस्तृत वर्णन किया है उनके अनुसार यहा के मध्य एक ऊँचे पर एक कोट जिसे महल कहा जा सकता है वो था और इस नगर की निगरानी के लिए बारह जगह पर मीनारे बनाई गयी थी जिसपर सैनिक दिन रात नगर की निगरानी करते थे
भारत के प्राचीन ग्रन्थ के अनुसार उद्दालक ऋषि ने जायस नगर में एक बार विश्व यज्ञ किया था जिसके कारण यहाँ की जमींन का रंग बदल गया था
जायस नगर के अग्नेय कोण पर तरंग सागर था जो की अब निखेई के नाम से जाना जाता है वर्तमान में चाँद बिल्डिग के पीछे पाया जाता है
जायस के रहने वाले सेवा निर्वृत शिक्षक भारत लाल जी सोनकर ने जायस के बारे में काफी शोध किया है जिनके लिखे लेख का प्रमुख अंश
इतिहासकारों के अनुसार जायस नगर पर दो बार विदेशी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया और पूरे नगर को ध्वस्त कर दिया
जायस नगर से 12 किमी दुरी पर एक ऐतिहासिक क़स्बा है जिसका नाम शाहमऊ है
शाहमऊ कस्बे का नाम यहाँ के राजा गुलाल शाह के नाम पर पड़ा जो की तिलोई स्टेट से आकर यहाँ पर बसे
यहाँ के राजा दिर्गज सिंह को स्वपन में माँ के दर्शन हुये जिसके कारण वो जायस नगर गये और से उस स्थान पर गये जहाँ के बारे में स्वपन में देख था
जायस से निकाली माँ अष्टभुजा देवी की विशाल प्रतिमा को लेकर राजा शाहमऊ चल पड़े रास्ते में ककरहिया नामक स्थान पर बैलगाड़ी रुक गयी वो आगे को नही बद रही थी तो राजा ने पुरोहितों से पूछा तो उनकी आज्ञानुसार उस स्थान पर सैकड़ो बकरों की बली दी गयी तब कही बैलगाड़ी आगे बड़ी
ये वही माँ अष्ट्रभुजा देवी का विशाल मंदिर है जिसकी स्थापनालगभग 300 साल पूर्व राजा शाहमऊ के कर कमलो द्वरा की गयी थी
इसकी खबर सुनते ही आसपास के लोगो का मेला लग गया लोग दूर दूर से माँ के दर्शन को आने लगे
माँ के चमत्कार के अनेको किस्से है लोगो का मानना है की यहाँ सच्चे मन से मागी गयी हर मुराद पूरी होती है
इस के आसपास के घरो के सभी मांगलिक कार्य बिना माँ के अश्रीवाद के शुरू नही होते है लोगो में मन में माँ के प्रति अपार श्रदा है
यही पास में बाबा गोसाई का भी मंदिर है यहा पर दर्शन मात्र से ही सभी दुखो का निवारण हो जाता है
बाबा द्वरा लगाया एक विशाल वटवृक्ष जो सैकड़ो साल से आज भी अपनी विशालता छाये हुये है
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बेहतरीन जानकारी।
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